________________ सप्तमः सर्गः। उसी प्रकार दमयन्तीके नेत्रोंने भी किया है / दमयन्तीके नेत्र कर्णान्त विशाल तथा चल है॥३४॥ केदारभाजा शिशिरप्रवेशात्पुण्याय मन्ये मृतमुत्पलिन्या ! जाना यतस्नत्कुसुमेक्षणेयं यतश्च नत्कोरकदृक् चकोरः // 35 / / केदारेति / केदारः क्षेत्रविशेषः पर्वतविशेषश्च / तं भजतीति तद्भाक। 'केदारः पर्वते शम्भी क्षेत्रभेदालवालयोः' इति विश्वः। तयोत्पलिन्या शिशिरप्रवेशात शिश. रतुप्रवेशाद्धेतोः पुण्याय धर्माय मृतं मने। भावे तः। इत्युप्रेक्षायाम् / यतो यस्मात् केदारमरणादियं भैमी तस्या सत्पलिन्याः कुसुमे पुष्पे एव ईचणे यस्याः सा जाता / यतश्चकोरश्च तत्कोरकावेव शो यस्य स जातः। केदारक्षेत्रमरणादुत्तमजन्मलाभ इत्यागमः // 35 // खेत या आलबाल अर्थात् थालेमें ( पक्षा०-केदारेश्वर नामक शङ्करजीके समीपमें ) स्थित कमलिनी शिशिर ऋतु (पक्षा०-ठंडे जल) में प्रवेश करनेसे पुण्य अर्थात् धर्मकार्यके लिये मर गयी है, क्योंकि उस कमलिनीका पुष्प इस दमयन्तीका नेत्र हुआ और उस कमलिनी का कोरक चकोरका नेत्र हुआ अर्थात् दमयन्ती का नेत्र कमलिनीके पुष्पके समान तथा चकोरका नेत्र कमलिनीके कोरकके समान हुआ। [विना अधिक पुण्यके कमलिनीपुष्प तथा कमलिनी-कोरकको क्रमशः दमयन्ती तथा चकोर का नेत्र बनना असम्भव है / कमलिनी केदार ( क्यारी पक्षा०-केदार क्षेत्र ) में रहती तथा शिशिर ऋतु ( पक्षा - जल या ठण्डे) में नष्ट हो जाती है, अतः उसने बड़ी तपस्या की है, जिससे कारण उसके पुष्प तथा कोरकको दमयन्ती तथा चकोरके नेत्र बननेका शुभ फल मिला हुआ है। कोर क की अपेक्षा पुष्पकी शोभा अधिक होती है, अतः 'दमयन्तीके नेत्र चकोर-नेत्रसे भी अधिक सुन्दर है' यह भी ध्वनित होता है ] // 35 // नासादसोया तिलपुष्पतूण जगत्त्रयन्यस्तशरत्रयस्य / श्वासानिलामोदभरानुमेयां दधद्विवाणी कुसुमायुधस्य / / 26 / नासेति / अमुष्या इयमदसीया, नासा नासिका, जगत्त्रये न्यस्तं प्रयुक्तं शरत्रयं यस्य तस्य कुसुमायुधस्य सम्बधिनी निश्वासानिलस्य निश्वासमारुतस्य आमोदभरेण सौरभातिशयेन अनुमेयां द्विबाणी शिष्टं वाणद्वयम् / समाहारे द्विगोर्डीप / दधत् तिलपुष्पमेव तूणमिषुधिरित्युत्प्रेक्षा // 36 // तीन लोकों को जीतने की भावनासे तीन बाणों का प्रयोग कर देनेपर कुसुमायुध ( कामदेव ) के बचे हुए दो बाणों को अपने अन्दर धारण करती हुई, इस दमयन्तीकी नाक ही तिलपुष्पोंसे निर्मित मानो तूणीर ( तरकस ) है / क्योंकि इसकी नाकसे निश्वास पवन की अत्यन्त खुशबू निकल रही है इसीसे पता चलता है कि कामदेवने अपने बचे हुए दो पुष्प-बाणोंको इसी दमयन्तीकी नाक के अन्दर रखा है। यदि ऐसा न होता तो इसकी निश्वास वायुसे इतनी सुगन्धि नहीं निकलती // 36 //