________________ सप्तमः सर्गः। सत्येव साम्ये सहशादशेषात् गुणान्तरेणोच्चकृषे यदङ्गैः / अस्यास्ततः स्यात्तुलनापि नाम वस्तु त्वमोषामुपमांवमानः / / 14 / / सतीति / यद्यस्मात् अस्या भैम्या अङ्गः कर्तृभिः साग्य सत्येव अशेषात्सदृशास्चन्द्रादेः “पञ्चमी विभक्ते" इति पञ्चमी / गुणान्तरेण केनापि गुणविशेषेणोच्चकृषे समानेषूत्कृष्टरभावीत्यर्थः / भावे लिट् / तत उन्नतत्वाद्धेतोः तुलना समीकरणमपि स्यान्नाम ? काकुः / स्यात् कि ? न स्यादवत्यर्थः। तथा हि-वस्तुतः परमार्थतस्तु अमीषामङ्गानामुपमा तुलना तस्या अवमानोऽपमानः उत्कृष्टानामसमानः सह समतापादनमवमान एवेत्यर्थः // 14 // जिस कारणसे इस दमयन्तीके प्रत्येक अङ्ग सम्पूर्ण समान (चन्द्र, कमल, बन्धूक आदि) से समानता रहनेपर ही अन्य गुणोंसे श्रेष्ठ हो गये, इस कारण इस दमयन्तीकी उनके साथ उपमा है ? अर्थात् नहीं है / ( अथवा-उपमा भले ही होवे, किन्तु ) वास्तविकमें तो इनकी उपमा अपमान ही है ( अथवा-उपमा देना इनका अपमान है ) / [ कवि-समयके अनुसार उपमेय पदार्थ कम गुणवाला तथा उपमान पदार्थ अधिक गुणवाला होता है तभी दोनोंका उपमानोपमेयभाव यथार्थ होता है, किन्तु वर्तुलता ( गोलाई ) आदि के कारण दमयन्तीके मुख तथा चन्द्र में समानता होने पर भी चन्द्रकी अपेक्षा दमयन्तोके मुखमें अधिक आझादकता, सर्वदा कलापूर्णता अर्थात् क्षयहीनता, कलङ्क-शून्यता आदि अधिक गुण है, इसी प्रकार नीलिमासे इन्दीवरको दमयन्तीके नेत्रों के समान होनेपर भी दमयन्तीके नेत्रों में कटाक्ष-विक्षेप आदि अधिक गुण है, तथा लालिमासे बन्धूक पुष्प (दुपहरियाका फूल ) को दमयन्ती के अधरके समान होने पर भी दमयन्तीके अधरमें अम्लानता, नित्य विकासिता, हास्यता आदि अधिक गुण हैं ( इसी प्रकार अन्यान्य अवयवों के विषयमें भी समझना चाहिये), अतः दमयन्तीके मुख आदि अवयवों का उपमेय तथा चन्द्र आदिको उपमान बनाना उनका तिरस्कार करना है, क्योंकि उपमान एवं उपमेयके गुणोंकी परस्पर समानता रहने तक उपमा देना तो सम्भव है, किन्तु उपमा में कम गुण और उपमेयमें अधिक गुण होनेपर उपमा देना उसका तिरस्कार करना है / लोकमें भी बहुत बड़े तथा बहुत छोटके साथ तुलना करना बड़ेका अपमान समझा जाता है ] // 14 // 'पुराकृतित्रणमिमां विधातुमभूद्विधातुः खलु हस्तलखः। येयं भवद्भावि पुरन्ध्रिसृष्टिः सास्यै यशस्तजयजं प्रदातुम् // 15 / / पुरेति / विधातुः स्रष्टुः, पुराकृतिः पूर्वसृष्टिः तत्र स्त्रैणं स्त्रीसमूहः पूर्वा स्त्रीसृ. ष्टिरित्यर्थः / इमां भैमी विधातुं स्रष्टुं हस्तलेखः अभूत् खलु / लेखनाभ्यासिभिह। स्तकौशलार्थमेव यल्लिख्यते स हस्तलेखः ताहशीयमिति निदर्शनानुप्राणिता पूर्वस 1. 'मापमानः' इति पाठान्तरम् / 2. 'पुराकृति स्त्रण-' इति पाठान्तरम् /