________________ नैषधमहाकाव्यम् / तीन शख (सर्शन चक्र) का अत्यन्त भय हो जाता है, उसी कारण वह अपना गला कट जानेके भयसे अपनी पूना में प्राप्त दषियुक्त श्वेतपिण्डाकार सत्तके समान चन्द्रमा को प्राणकाळमें मुखमें डालकर भी बार-बार छोड़ देता है। समुद्रमन्थनके बाद अमृत बांटनेके समय सूर्य-चन्द्र के बीच में बैठकर राहुने नब अमृत पी लिया तब उसे अमर जानकर विष्णु ने उसको शिर सुदर्शन चक्रसे काट दिया ] // 14 // वदनगर्भगतं न निजेच्छया शशिनमुज्झति राहुरसंशयम् / ... अशित एव गलत्ययमत्ययं सखि ! विना गलनालविलाध्वना // 6 // बहनेति / हे समि! पहाराहुः बदनगर्भगतमास्यान्त:प्रविष्टं शशिनं निजेछपा स्वेण्या, नोति / असंशयं संभयो..नास्ति / अर्थाभावेऽग्ययोमावः। किं स्वयं सशी अमितो गिलिस एव मस्ययं बिना भन्छु मेस्यर्थः / 'मस्ययोऽतिकमे कुछ इति जयन्ती। यमालविकायमा कण्ठनालान्त:कुहरमार्गेण, गति मिस्मरति। राहोः शिरोमानदेन कण्ठनालनिस्पतस्याशितस्य जठराग्निसंयोगविरहादस्य पापिः पुस्येन्दोः पुनरदय इत्युप्रेशायः // 65 // ... राहु-मुखके भीतर गये अर्थात खाये हुए चन्द्रमाको अपनी इच्छासे नहीं छोड़ता है, किन्तु निश्चय ही खाया हुभा यह चन्द्रमा बिना बीर्ण हुए ही (अथवा-अनायास ही) गलनालके विलरूपी रास्ते से निकल माता है। [राहुका केवल सिरमात्र होनेसे चन्द्रमा का बाहर निकल जाना सरह ही है, यदि उसका शरीर पूर्ण पर्वात धड़के सहित होता तो चन्द्रमा उसके पेट में पहुँचकर जीर्ण होने (पच जाने) से बाहर नहीं निकल पाता / मन्य भी कोई व्यक्ति साये हुए किसी पदार्थको स्वेच्छासे बाहर नहीं निकालता है ] // 65 // ऋजुडशः कथयन्ति पुराविदो मधुभिदं किल राहुशिरश्छिदम् / विरहिमूर्धभिदं निगदन्ति न क नु शशी यदि तज्जठरानलः // 66 // अडस इति ।रासादाविककार्यमाप्रदर्शिना, न स्वागामिकार्यसिन इस्यबापुराविषः पुराणज्ञाः पूर्वपुरुषा, मधुमिदं विष्णु, राहुशिररिक कथयन्ति किछ। मिति वार्तावाम् / विरहिमूर्यमिदं पियोगिभिरश्विदं न मिगदन्तीति काकुः / तकनीवमित्वः। तस्वस्थ राहोर्जठरावलो पदि मस्तीति शेषः / शशी क्य दुनियापि स्यादिपराहुभिरखेदेन तदीयजठराग्निविच्छेदकस्वाहिरहिमारक. समिनमुखीवनमा विष्णुविरहिशिरश्छेदीत्येवंग्यपदेश्यः न राशिरस्छेदीस्पः॥ सौपा देखनेवाले (सरदुषि) पौराणिक लोग मधुसूदन (विष्णु) को राहुका सिर कारवान करते है, विरहियोंका सिर काटने वाला नहीं करते। (क्योंकि ) यदि राहुका अमरानक (पूर्ण पड़के साथ शरीर होनेसे जठराग्नि होती तो चन्द्रमा कहां होता ? अर्थात नहीं होगा किन्तु राहुके जठराग्निमें ही जीणं हो जाता। [ विष्णुदारा राहुका शिर काटने के कारण ही राहु के मुखमें गया हुआ मी चन्द्रमा गईनके रास्ते बार-बार बाहर निकल