________________ पञ्चमः सर्गः 321 'भाभासमिदो घुरच्' / वितथं दुःखमयस्वातिफलन / कथं वा नावलोकयसि न पश्यसि, न जानासीत्यर्थः। येनाज्ञानेन तवापि धीधर्मयशसी / अभंगुरावितथे अपीति भावः / परिहातुं चलति / अहो अस्थिरविषयलौक्यात् स्थिरसुकृतपरित्यागो भवाहशामनुचित इत्यर्थः // 114 // हे धीर नल ! तुम इस प्राणि-समूहको विनाशशील ( स्वप्न के समान ) निष्फल क्यों नहीं देखते हो 1 जिससे धर्म और यश ( दोनों ) को छोड़ने के लिये तुम्हारी बुद्धि चलाय. मान हो रही हैं, अहो! आश्चर्य है। [ संसारको विनश्वर एवं स्वप्न के समान असत्य जाननेवाले आपको, धर्म तथा यश दोनोंको तिलाञ्जलि देने का विचार करना कदापि शोमा नहीं देता। अतः भाएको हमारा दूत-कर्म अवश्य करना चाहिए ] // 118 // कः कुलेऽजनि जगन्मुकुटे वः प्रार्थकेप्सितमपूरि न येन / इन्दुरादिरजनिष्ट कलङ्की कष्टमत्र स भवानपि मा भूत् // 116 // ___ क इति / जगन्मुकुटे अगभूषणे, वः कुळे प्रार्थकेप्सितमर्थिमनोरथः येन नापूरि न पूरितम् / कोऽजनि जातः, न कोऽपीत्यर्थः / 'दीपजन-' इप्यादिना कर्तरि लुङि चिण / आदियुष्माकं कूटस्थ इन्दुः कलछी अननिष्ट जातः / कष्टं ! अन्न लोके भवा. नपि सकलको मा भूत् / अपकीति मा कुरुष्प्रत्ययाः॥ 119 // ___ आपके, संसारमें मुकुटरूप वंशमें कौन पैदा हुमा, जिसने याचककी अभिलाषा पूरी नहीं की ? अर्थात सभी ने याचकोंकी अभिलाषा पूरी की है। सर्वप्रथम चन्द्र हो कलङ्की (कलङ्कवाला, पक्षा०-मृगचिह्नित) हुआ, कष्ट है ! अब आप भी वह (कलङ्कयुक्त) न होइये। [आप. के जिस कार्यसे कुल में कलङ्क न लगे, ऐसा काम कीजिये / अथवा-आपके कुलमें आदि पुरुष अर्थात् केवल चन्द्रमा हो कलङ्को हुआ दूसरा नहीं, अतः आप हमलोगोंकी याचनाको अस्वीकार कर कलङ्की मत बनिये / अथवा-जब आपके कुरुका आदि पुरुष ही कहकी है, तब आपको भी हमारी याचनाको पहले स्वीकार करने के बाद फिर अस्वीकार करनेसे कलङ्की बनाना आश्चर्य नहीं है / आप हमारो याचनाको अस्वीकृत न करें] // 119 // यापदृष्टिरपि या मुखमुद्रा याचमानमनु या च न तुष्टिः / त्वादशस्य सकलः स कलङ्कः शीतभासि शशकः परमङ्कः // 120 // अथ विचार्यमाणे स्वमेव कलकी न शशाङ्क इत्याह-येति / स्वाहशस्य याच मान मनु अर्थिनं प्रति, याप्यपदृष्टिविकृतदर्शनं, या च मुखमुद्रा मौनं, या न तुष्टिरसन्तोषश्व, स सकलो विकारः कलकः / शीतभासि चन्द्रे, शशकः परं केवलमतः श्रीवत्सादिवत् चिह्न, न तु कला इत्यर्थः // 120 // ___ याचकको देखकर जो दुदृष्टि (बुरी निगाइसे देखना), जो मौन और जो सन्तोषाभाव है। वही तुम्हारे जैसे (धर्मारमा एवं धैर्यशाली पुण्यश्लोक ) व्यक्ति के लिए सम्पूर्ण कलङ्क है।