________________ 314 नैषधमहाकाव्यम् / पुरः स्थितस्य कचिदस्य भूषारत्नेषु नार्यः प्रतिविम्बितानि / व्योमन्यहश्येषु निजान्यपश्यन् विस्मित्य विस्मित्य सहस्रकत्वः / / 11 / / पुर इति // कचिद्देशे नार्यः पुर स्थितस्य नलस्य अहश्येषु भूषारत्नेषु निजानि प्रतिविम्बितानि प्रतिबिम्बानि, व्योमनि शून्ये विस्मित्य विस्मित्य पुनः पुनः विस्मिता भूत्वा / सहस्रकृस्वः सहस्रवारमपश्यन् / अत्रापि निरालम्बनप्रतिबिम्ब दर्शनोक्तेरकारणे कार्योत्पत्तिलक्षणो विभावनालारः॥ 41 // त्रियोंने ( अपने ) आगे स्थित नलके भूषण-मणियोंमें अपने प्रतिबिम्बोंको अत्यन्त आश्चर्यित होकर हजारों ( अनेकों ) बार आकाशमें देखा / [ आकाशमें किसीकी कोई वस्तु कदापि प्रतिबिम्बित नहीं होती, किन्तु हमलोगोंका प्रतिबिम्ब आकाशमें दीख रहा है, अतः अन्तःपुरकी स्त्रियोंने बहुत बार आश्चर्यचकित होकर प्रतिबिम्बोंको देखा ] // 41 // तस्मिन् विषज्याधपथान्निवृत्तं तदङ्गरागच्छुरितं निरीक्ष्य / विस्मरतामापुरनुस्मरन्त्यः क्षिप्तं मिथः कन्दुकमिन्दुमुख्यः // 42 / / तस्मिमिति // इन्दुमुख्यः स्त्रियः, मिथः क्षिप्तम् , अन्योन्यं प्रति प्रेरितं किन्तु / तस्मिन्नले विषज्य लम्भित्वा अर्धः पन्थाः अर्धपथः, विशेषणसमासे समासान्तः / "अधं नपुंसकम्" इत्येकदेशसमास इति केचित् / तत्र समांशनिबन्धः / तस्मानिवृत्तं प्रत्यागच्छन्तं, तस्य नलस्याङ्गरागेण च्छुरितं रूषितं, कन्दुकं निरीक्ष्य अनुस्मरन्स्यः कुत एतदिति पुनःपुनरनुसन्दधाना विस्मरतां विस्मतत्वमापुः / “नमिकस्पिस्मि" इत्यादिना रप्रत्ययः // 42 // चन्द्रमुखियां परस्परमें एक दूसरेको लक्ष्यकर फेंका गया, किन्तु नलके शरीर में टकराकर आधे रास्तेमें ही गिरा हुआ तथा उनके शरीर-राग ( चन्दन आदि ) के व्याप्त गेंदको देख (किसका यह अङ्गराग इसमें लग गया ? तथा यह आधे रास्ते में ही क्यों गिर पड़ा? ऐसा ) विचार करती हुई आश्चर्यित हो गयीं // 42 // पुसि स्वभतव्योतरिक्तमूते भूत्वाप्यवाक्षानियमवातन्यः / छायासु रूपं भुवि तस्य वीक्ष्य फलं शोरानशिरे महिष्यः // 43 // पुंसीति / महिष्यो राजदाराः, स्वभर्तृव्यतिरिक्तभूते पुंसि परपुरुषे विषये अवी. चानियमेन अनिरीक्षासङ्कल्पेन, व्रतिन्यः व्रतवत्यो भूत्वा तस्य नलस्य भुवि कुट्टिमभूमौ छायासु प्रतिबिम्बेषु रूपं सौन्दर्य वीक्ष्य हशोः फलमानशिरे प्रापुः। “अत आदेः" इत्यभ्यासदीर्घः / “अश्नोतेश्च" इति नुडागमः // 43 // अपने पति ( राजा भीम ) के अतिरिक्त पुरुषको न देखनेका नियम पूर्वक व्रत पालन करनेवाली होकर भी पटरानियोंने मणिमय भूमि [ फर्श पर पड़ी हुई ] नलकी परछाहीं में उनका रूप देखकर नेत्रोंका फल प्राप्त कर लिया। [प्रतिबिम्बमें नलका रूप देखनेसे उनका व्रत-मङ्ग भी नहीं हुआ। तथा सुन्दरतमरूप देखनेसे उनके नेत्र भी सफल हो गये ] // 43 //