________________ 218 नैषधमहाकाव्यम्। पुरं कुण्डिनं विवेश / “सलिकमये शशिनि रवेदीपितयो मूलितास्तमो नैशम् / उपयन्ति दर्पणोदरनिहिता इव मन्दिरस्यान्तः // " इति शास्त्रादियमुपमा // . // ___उस नलने सारथि-युक्त रथसे उतरकर शीघ्र ही नगरमें प्रवेश किया, जिस प्रकार किरणसमूह सूर्य-निम्बसे निकलकर चन्द्रमण्डलमें प्रवेश करता है। [नगरमें प्रवेश करनेसे चन्द्रमाके समान नलकी शोभा हुई / ज्योतिष-सिद्धान्तके अनुसार सूर्य-मण्डलके प्रकाश से हो चन्द्रमण्डलमें प्रकाश होता है ] // 7 // चित्रं तदा कुण्डिनवेशिनस्सा नलस्य मूर्तिवृते नहश्या / बभूव तापत्रतर तथापि विकरस्येव यदस्य मृतिः // 8 // चित्रमिति / तदा तस्मिन्समये, कुण्डिनवेशिनः कुण्डिनप्रविष्टस्य नलस्य सा तथा दर्शनीया मूर्ति रश्या भदर्शनीया / नमर्यस्य नशब्दस्य 'सुप्मुपा' इति समासःपड़ते जाता, चित्रं विरोधादिति भावः / इन्द्रवराश्यत्वं गतत्वविरोधः / तवापरपापि अस्य मूर्तिविश्वकरश्यति यत्तचित्रतरं बभूव, हरयत्वाश्यत्वयोर्वि रोषादिति भावः / विश्वस्यकस्यैव श्या दृष्टिप्रियवेत्यविरोधः / अत्र विरोधाभासपोः संवृष्टिः॥८॥ उस समय कुण्डिनपुर में प्रवेश करनेवाले नलकी मूर्ति ( सबसे देखी जानेवाली या मुन्दरतम भाकृति ) अदृश्य ( पक्षा०-असुन्दर ) हो गयी, यह आश्चर्य है, तथापि इस नकी मूर्ति जो सबसे देखी जानीवाली ( पक्षा०-संसार में एकमात्र सुन्दर ) हो गयी, यह अधिक माश्चर्य है / [इन्द्रके दिये हुए वरदान ( 5 / 137 ) से नल नगर में प्रवेश करते समय अन्तर्धान हो गये ] // 8 // जनैर्विदग्धर्भवनैश्च मुग्धैः पदे पदे विस्मयकल्पपल्लीम् / विगाहमाना पुरमस्य दृष्टिरथाददे राजकुलातिथित्यम् // 1 // बनैरिति / अथास्य नलस्य, रष्टिविदग्धैरभिज्ञैः जनैः मुग्ध सुन्दरैः भवन पदे पदे विस्मयकत्सबल्ली भावार्यावहामित्यर्थः / पुरं विगाहमाना विभावयन्सी / राज प्राविधित्वमावदेशमादसी राजभवनं ददर्शेत्यर्थः॥९॥ इसके बाद चतुर मनुष्यों तथा मनोहर महलों से पग-पगपर विस्मयरूप कल्पलताको प्राप्त करती हुई माद चतुर मनुष्यों एवं मन्दर भवनोंको देखकर आश्चयित होती हुई इस नलको दृष्टिने क्रमशः राज-भवनके अतिथित्वको प्राप्त किया अर्थात् राजभवनको देखा। [अथवा प्रथम पाठा० चतुर......होती हुई इस नलकी दृष्टिने विलम्बसे राज-मवन...... देखी / भववा द्वितीय पाठा-चतुर...... प्राप्त करते हुए नलकी दृष्टि...... / अब नलने अन्डिनपुरीमें प्रवेश किया तब वहाँ पर पग-पग पर चतुर मनुष्यों तथा सुन्दर भवनोंको देकर कल्पलता प्राप्तिके समान भावर्य करते हुए वे बहुत देरके बाद राज-मवनके पास पा]॥९॥