________________ 302 नैषधमहाकाव्यम् / प्राप्त किया। [ यद्यपि नलने वास्तविक दमयन्तीको कभी भी प्रत्यक्ष रूपसे नहीं देखा था, तथापि अन्य खियोंमें अप्सराओं के समान सौन्दर्य होनेपर भी दमयन्तीकी अपेक्षा अधिक न्यूनता होनेके कारण नलने दमयन्ती-भिन्न उन स्त्रियोंको दमयन्ती समझनेका भ्रम नहीं किया, अत एव उन स्त्रियोंका अप्सरस्तुल्य सौन्दर्य भी नलको अपने प्रति अनुरक नहीं कर सका] // 15 // मैमीनिराशे हृदि मन्मथेन दत्तस्वहस्ताद्विरहाद्विहस्तः। स तामलीकामवलोक्य तत्र क्षणादपश्यन्व्यषददिबुद्धः // 16 // भैमीति / भैम्या निराशे सुरैः सताशे, हृदि, मन्मथेन दत्तस्वहस्ताहत्तावलम्वा. अनितादित्यर्थः। विरहाद्विहस्तो विह्वलः, स नलः अलीकां तां भैमीमवलोक्य, पणात विबुद्धः निवृत्तभ्रमः, तत्र तामपश्यन् भ्यषदत् विषण्णोऽभूत्। सदेर्ला / लदित्वाच्चलेरकादेशः। 'सदिरप्रतेः' इत्यव्यवायेऽपि षत्वम् / भैमीशून्यविबोधात्त. द्वान भ्रम एव तस्याशास्योऽभवदिति भावः // 16 // दमयन्तीसे निराश, हृदयमें कामदेवके द्वारा हस्तावलम्ब अर्थात् सहारा दिये गये, विरहसे विहस्त अर्थात् व्याकुल नल वहां ( राजभवनमें, अथवा-हृदयमें ) उस असत्यदृष्ट दमयन्तीको देखकर क्षणभरमें सजग होकर (मुझ दूतको दमयन्ती-प्राप्तिका विचार करनेका कुछ अधिकार नहीं ऐसा विचार होनेपर ) उसे नहीं देखते हुए विषादसे युक्त हो गये / [जिस कामदेवने नलके लिये हाथ दिया उस कामदेवको विहस्त हाथसे हीन होना चाहिये था, किन्तु नल ही विहस्त ( हाथसे रहित। पक्षा०-व्याकुल ) हुए, यह आश्चर्य है / अथवा हृदयके दमयन्तीसे निराश होनेपर कामदेवके द्वारा...... / दूत-कर्म स्वीकार करनेसे भैमीके विषयमें निराश होनेसे शान्त विरहको कामदेवने फिर सहारा देकर बढ़ाया / विरहजन्य भ्रमसे नलने दमयन्तीको देखा, किन्तु दूत होनेके कारण क्षणमात्रमें ही भ्रम-नाश होनेपर दमयन्तीको नहीं देखा, इस प्रकार दमयन्तीको रहीं दिखलानेवाला वोध मुझे व्यर्थ ही हुआ, वह भ्रम नष्ट हो गया अत एव नलको कष्ट हुआ ] // 16 / / / प्रियां विकल्पोपहृतां स यावहिगीशसन्देशमजल्पदल्पम् / अरश्यवाग्भीषितभूरिभीरुभवो रवस्तावदचेतयत्तम् // 17 // प्रियामिति / स नलः, विकल्पोपहृतां विभ्रमोपनीता, प्रियां दमयन्ती, यावहिगीशसन्देशं इन्द्रादिवाचिकं, अल्पमजल्पदकथयत् / तावददृश्यया अलक्ष्यकर्तृकया, वाचा हेतुका, भीषिता वित्रासिताः। 'भियो हेतुभये षुक्' / ताश्च ता भूरयोऽनेका भीरवो भयशीलाः स्त्रियः ताभ्यो भवतीति तद्भवो रवः कलकलः, तं नलमचेतय. दबोधयत् / चेततेभीवादिकात् णिच् // 17 // ___उस नलने सङ्कल्पकल्पित (या भ्रम-कल्पित ) प्रिया दमयन्तीसे दिक्पालोंके संदेशको जबतक थोड़ा कहा तभी तक अदृश्य (भूतादिकथित) वचनसे अत्यन्त डरी हुई उन (बालाओं) के शब्दने उनको सचेत कर दिया। [ सङ्कल्पकल्पित दमयन्तीसे ही नल भ्रमवश इन्द्रादि