________________ चतुर्थः सर्गः 261 पुत्री दमयन्तीकी सखियोंसे कहा-'शिशिर ऋतुके बीतते हो अर्थात् वसन्त ऋतुका आरम्म में ही ऐसी (कोमलाङ्गी युवतियों या विरहपीडिताओं) के शरीर में फूल मी बाणके समान व्यवहार करता है, अत एव ( तुमलोग ) इस दमयन्तीके विषय में योग्य उपचार करो। [ ऐसौ कोमलागियों के शरीर में फूलसे मारनेपर मी वाणसे मारने के समान पीड़ा होती है, फूलको कामबाण होनेसे विरहियों के लिये तो पीडा होना स्वाभाविक ही है ] // 120 // कतिपयदिवसैर्वयस्यया वः स्वयमभिलष्य वरिष्यते वरीयान् / / क्रशिमशमनयानया तदाप्तुं रुचिरुचिताथ भवद्विधाभिधाभिः // 12 // ___ कतीति / किंच, कतिपयदिवसः अरुपदिन रेव, वो युष्माकं, वयस्यया सख्या भैग्या, वरीयान् श्रेष्ठः पुमान् , स्वयमभिलष्य कामयिस्वा वरिष्यते / यं कामयते तं वरिष्यतीत्यर्थः / ततस्माद् अथेदानीम्, अनया दमयन्स्या (का), भवतीनां विधेव विधा यासा तासां भवहिधानां सखीनां, सर्वनाम्नो वृत्तिमात्रे पुंबद्भावः / अभिधामिरुतिभिर्या क्रशिमशमना काय॑निवर्तना, तया उपायभूतयारुचिः कान्तिः प्रीतिश्च, आप्तुमुचिता आप्तम्या, स्ववंबरपर्यन्तं भवदुपलालनावचनैः खेदं विहाय प्रसन्नया सन्तुष्टया च स्थातव्यमित्यर्थः / द्रुतेत्यादिश्लोकचतुष्टयं पुष्पिताप्रावृत्तम् // तमलोगोंको सखी यह दमयन्ती कुछ (थोड़े) ही दिनों में स्वयं अभिलाषा करके अत्यन्त उत्तम (पतिको ) स्वीकार करेगी (जिसे यह हृदयसे चाहती है, उसे ही स्वयंवर में स्वयं वरण करेगी, इस कार्यमें पिता होने के कारण मैं किसी प्रकार का वाधक नहीं बनूंगा) / इस कारण इस समय इस दमयन्तोकी दुर्बलता दूर करनेवाली रचि (विरहावस्थाके पहले वाली सुन्दरता, या इच्छा), तुमलोगों के समान ( हितैषिणी सखियों ) के कहने अर्थात समझाने ( पाठभेदसे-उपचारोंसे ) प्राप्त करना उचित अर्थात आवश्यक है। [ 'कृशता दूर करनेवाली' कह विशेषण प्रथमान्त मानकर दमयन्ती पक्षमें भी लग सकता है। इसका शीघ्र ही स्वयंवर होनेवाला है, अत एव तुमलोग ऐसा उपचार करो; जिससे यह दमयन्ती कशना दूर कर पहले के समान सुन्दर हो जाये ] // 121 // एवं यद्वदता नृपेण तनया नापच्छि लज्जापदंर यन्मोहः स्मरभूरकल्पि वपुषः पाण्डुत्वतापादिभिः / यच्चाशीःकपटादवादि सदृशी स्यात्तत्र या सान्त्वना तन्मत्वालिजनो मनोऽब्धिमतनोदानन्दमन्दाक्षयोः // 122 // एवमिति / एवं वदता नृपेण, तनया दमयन्ती, लज्जापदं लजाहेतुं, नापृच्छि न पृष्टेति यत् / ज्ञातांशे प्रश्नायोगादिति भावः। पृच्छेदुंहादिस्वादप्रधाने कर्मणि लुछ। मोहो मूछों च वपुषः पाण्गुस्वतापादिभिलिङ्गः स्मरभूः कामजोऽकल्पि निश्चित 1. विधामिः' इति पाठान्तरम्। 2. 'लज्जास्पदम्' इति पाठान्तरम् /