________________ चतुर्थः सर्गः 243 कृत करनेवाले कुष्ठादि रोग) को शान्त करती है, किन्तु तुम्हारी सेवा (आराधना, पक्षान्तरमें-आश्रय) करनेवालेको अत्यन्त अन्धता ( देखिये श्लो० 12, या शानशून्यता), शरीर. क्षति ( दुर्बलता आदि, पक्षान्तर में-अकाल मृत्यु ) और पाण्डुता (शरीरमें विरहजन्य पाण्डुता पक्षान्तर में-पाण्डुरोग) होते हैं / [ दूसरे सूर्य आदि देवता तो अने भक्तोंके अन्यकृत उक्त रोगों को भी शान्त कर देते हैं, किन्तु तुम मपनी सेवा करनेबालों के अन्यकृत रोगोंको शान्त करना तो दूर रहा, उल्टे स्वयं ही इन रोगोंको उत्पन्न कर देते हो, धन्य है तुम्हारा देवत्व ! ] // 85 // स्मर ! नृशंसतमस्त्वमतो विधिः सुमनसः कृतवान् भवदायुधम / यदि धनुदृढमाशुगमायसं तव सृजेत् प्रलयं त्रिजगद् व्रजेत् / / 86 // स्मरेति / हे स्मर ! नृन् शंसति हिनस्तीति नृशंसो घातकः, 'शंस हिंसायाम्' इति धातोः पचाद्यच / स्वमतिनृशंसतमः, अतो (हेतो.)विधिः स्रष्टा, सुमनसः पुष्पाणि,, भवतः आयुधं कृतवान् / तव दृढं धनुरायतमयोमयम् आशुगं शरश्च एजेधदि / त्रयाणां जगतां समाहारखिजगत् (कर्तृ), प्रलयं विनाशं व्रजेत् / तव पापिष्ठता दृष्टवा विदुषा परमेष्ठिना सम्यगनुष्ठितमिति भावः // 86 // हे कामदेव ! तुम अत्यन्त क्रूर हो, अत एव ब्रह्माने तुम्हारे शासको फूलका बनाया / यदि उसने तुम्हारा धनुष दृढ़ तथा बाण लोहेका बनाया होता तो तीनों लोकोंका प्रलय हो जाता। [इस प्रकार ब्रह्माकी बनी-बनाई सृष्टि अनायास ही नष्ट हो जाती, अतः तुम्हारी क्रूरता को देखकर चतुर ब्रह्माजी ने अपनी रची सृष्टिकी रक्षाका प्रबन्ध पहलेसे ही कर लिया ] // 86 // स्मररिपोरिव रोपशिखी पुरां दहतु ते जगतामपि मा त्रयम् | इति विधिस्त्वदिपून कुसुमानि कि मधुभिरन्तरसिञ्चदनिवृतः // 8 // स्मरेति / स्मररिपोस्त्वदरेहरस्य रोपशिखी बाणाग्निः / 'पस्त्री रोप इषुईयोः' इत्यमरः / पुरा घ्रयमिव ते तव रोपशिखी जगतां त्रयं मा दहस्विति मवेति शेषः / गम्यमानार्थवादप्रयोगः / विधिः स्रष्टा, अनिवृतस्त्वां कुसुमेधुं कृत्वाप्यपरितुष्टः सन् , वदिषून कुसुमानि मधुभिर्मकरन्दैः, अन्तरसिञ्चत् अग्निशान्त्यर्थमौषत् किमित्युस्प्रेक्षा / अन्यथा पापिष्ठस्प ते को वारयितेति भावः // 87 // जैसे काम-रिपु महादेवजीने त्रिपुर ( त्रिपुरासुर, पक्षान्तरमें-तीन नगर ) को जलाया था, वैसे ही तुम्हारे बाणों की अग्नि तीनों लोकों को न जलावे, इस कारण चिन्तित ब्रह्माने तुम्हारे बाणभूत पुष्पोंको भीतर में मधु (पुष्परस अर्थात् पुष्पराग ) से सिक्त (आई) कर दिया क्या ? [रससे सिक्त होनेसे मार्द्र पदार्थको दाहक शक्ति कम हो जाती है, जैसे गीले इन्धन आदि की। पहले महादेवजीने तीन नगरों (पक्षा०-त्रिपुरासुर) को जला दिया अतः यह दृष्ट कामदेव कहीं तीनों लोकों को न जला दे, इससे ब्रह्माने पहले तो उसके धनुष तथा