________________ 16 नैषधमहाकाव्यम् / अङ्गुलियोंके बीच में तीन रेखाओंका होना सर्वविदित है, इसकी सृष्टि करते समय उन्हींके लगनेसे दमयन्तीका उदर आगे तीन रेखाओंसे युक्त तथा पीठमें अङ्गुष्ठ लगनेसे चिपटा हो गया है / दमयन्तीका उदर एक मुट्ठीमें बांधने योग्य अर्थात् अत्यन्त पतला है ] // 34 // उदरं परिमाति मुष्टिना कुतुकी कोऽपि दमस्वसुः किमु ? / धृततच्चतुरङ्गुलीव यद्वलिभिर्भाति सहेमकाश्चिभिः / / 35 // उदरमिति , कोऽपि कुतुकी दमस्वसुरुदरं मुष्टिना परिमाति किमु ? परिच्छिनत्ति किमित्युत्प्रेक्षा, कुतः ? यद् यस्मात् सहेमकाञ्जिभिर्वलिभिहेंमकाञ्चया सह चतसृभिस्त्रिवलिभिरित्यर्थः / एतस्याः कनकसावयं सूचितम् धृतं तस्य मातुश्चतुरङ्गुली अङ्गुलीचतुष्टयं येन तदिव भातीत्युत्प्रक्षा। अत्रोत्प्रेक्षयोहे तुहेतुमद्भूतयोरङ्गाङ्गिभावेन सजातीयः सङ्करः / पूर्वश्लोके वलीनां तिसृणां चतुरङ्गुलिमध्यनिर्गतत्वमुस्प्रेक्षितम् / इह तु तासामेव काञ्चीसहितानां चतुरङ्गुलित्वमुत्प्रेक्षत इति भेदः प्रेक्षितरिति भावः॥ 35 // कौतुकी कोई ( ब्रह्मा ) दमयन्तीके उदरको मुट्ठीसे नापता है क्या ?, क्योंकि स्वर्णकी करधनी-सहित त्रिवलियोंसे ऐसा शोभता है कि मानो उस ( कौतुकी ) के चारों अङ्गुलियों (के मध्यगत तीन रेखाओं ) को धारण कर रहा हो। [ पूर्व श्लोक ( 2 / 34 ) में त्रिवलियोंको चार अङ्गुलियोंके बीचमें होनेकी उत्प्रेक्षा की गयी है, तथा इस श्लोकमें उनके सहित करधनी सहित उन्हों त्रिवलियोंको चार अङ्गुलियां होनेको उत्प्रेक्षा की गयी है, अतः दोनोंमें भेद स्पष्ट है ] // 35 // पृथुवर्तुलतानितम्बकृन्मिहिरस्यन्दनशिल्पशिक्षया / विधिरेककचक्रचारिणं किमु निर्मित्सति मान्मथं रथम् / / 36 / / पृथ्विति / पृथु वर्तुलं च तस्याः नितम्बं करोतीति नितम्बकृन्नितम्बं कृतवान् विधिः ब्रह्मा मिहिरस्यन्दनशिल्पशिक्षया रविरथनिर्माणाभ्यासपाटवेन एककमेकाकि 'एकादाकिनिन्चासहाये' इति चकारात् कप्रत्ययः / तेन चक्रेण चरतीति तच्चारिणं मान्मथं रथं निर्मित्सति किमु ? सूर्यस्येव मन्मथस्यापि एकचक्रं रथं निर्मातुमिच्छात किमु ? इत्युत्प्रेक्षा / अन्यथा किमर्थमिदं नितम्बनिर्माणमिति भावः। मातः सन्नन्तालट् / 'सनि मीमे'त्यादिना ईसादेशः, 'सस्यार्द्धधातुक' इति सकारस्य तकारः, 'अत्र लोपोऽभ्यासस्ये त्यभ्यासलोपः // 36 // विशाल तथा गोलाकार दमयन्ती के नितम्बको बनानेवाला ब्रह्मा सूर्यके रथकी कारीगरीके अभ्याससे एक पहियेसे चलनेवाला कामदेवका रथ बनाना चाहता है क्या ? [ पहले ब्रह्माने एक पहियेसे चलनेवाला रथ सूर्यका ही बनाया था, किन्तु मालूम पड़ता है कि अब वह एक पहियेसे चलनेवाला कामदेवका रथ भी बनाना चाहता है / दमयन्ती के विशाल तथा गोलाकार नितम्बको देखकर सभी कामुक हो जाते हैं // 36 //