________________ 202 नैषधमहाकाव्यम् / अथ चिन्तानुभावं सन्तापं वर्णयति-कुसुमेत्यादि / कुसुमधापजेन स्मरस. मुग्थेन, तापेन समाकुलं विह्वलम्, अत एवाहरहः अहन्यहनि / अत्यन्तसंयोगे वीप्सायां द्विर्वचनम् / 'रोः सुपि' इत्यहो नकारस्य रेफादेशः। अभ्यधिकाधिका. मस्यन्ताधिकाम् / आभीचण्ये विर्भावः। रविरुचिम्लपितस्य भांशहतस्प, विधो. रिन्दोः, विधां प्रकारं, तादृशीमवस्थामित्यर्थः / अत एव सादृश्याक्षेपादसम्भवद्वस्तु. सम्बन्धानिदर्शनालङ्कारः। वहत् प्राप्नुवत् , कमलकोमलं तन्मुखमैचयत दृष्टं सखी. जनेनेति शेषः / सकरुणमिति भावः // 6 // काम-ज्वरसे पीडित उस दमयन्ती का कमल के समान कोमल मुख सूर्य के सन्ताप से दिनपर दिन क्रमशः क्षीणकान्ति चन्द्रमाके समान होता जाता था। [कृष्ण पक्षका चन्द्रमा जिस प्रकार दिनपर दिन सूर्य के धूप से फीका पड़ता जाता है, उसी प्रकार नल-विरह से काम-पीडित दमयन्ती का मुख भी संस्कारादि के छोड़ने से मलिन एवं क्षीण के रहा था] // 6 // तरुणतातपनद्युतिनिर्मितढिम तत्कुचकुम्भयुगं तथा / अनलसङ्गतितापमुपैतु नो कुसुमचापकुलालविलासजम् // 7 // तरुणतेति / तस्याः कुचावेव कुम्भौ तयोयुगं (कर्तृ), तरुणता तारुण्यमेव, तपनातिरातपस्तया निर्मितः कृतो द्रतिमा काठिन्यं यस्य तत्तथा, कुसुमचाप एव कु. लाल कुम्भकारस्तस्य विलासेन व्यापारेण जातं तज्जम्, अनलसङ्गतिः नलसनत्यभावः / क्वचित् प्रसज्यप्रतिषेधे नन्समास इष्यते / अर्थाभावेऽव्ययीभावे वा नपुं. सकरवम् / सैवानलसतिरग्निसंयोग इति श्लिष्टरूपकम, तया तापमुपैतु नो काकुः उपेयादेवेत्यर्थः / प्राप्तकाले लोट / तथा हि-आमो घटः कुलालेन दायक प्रथममातपेन पक्रवा पश्चादग्निना पच्यते / रूपकालकारः // 7 // / उस समय कामदेवरूपी कुम्हार के विलास (क्रीडा या चाहना) से उत्पन्न (बनाया गया ), तारुण्यरूप सूर्यको धुति (शोमा, पक्षान्तरमें-घाम ) से कठिन ( पक्षान्तरमें-सूखकर कड़ा) हुमा, उस दमयन्तीका स्तनरूप दो घट अर्थात् स्तन-कलश-दय मनल-संगति (मग्निका संसर्ग) भावों में पड़ने (पक्षान्तरमै नलके विरहमें रहने ) के सन्तापको नही प्राप्त करें क्या 1 अर्थात् भवश्य प्राप्त करें। [ 'कामदेव ..."उत्पन्न' यह सन्ताप का मी विशेषण हो सकता है। जिस प्रकार कुम्हार घड़ों को बनाकर उन्हें धूप में मुखानेसे कड़ा होने के बाद आग पकाता है, उसी प्रकार कामकृत युवावस्थासे कठिनीभूत घरद्वयके समान दमयन्तीका स्तनद्वय बनल ( नलका ममाव ) अर्थात नस-विरहमें सन्तप्त होते थे, यह ठीक है]॥॥