________________ चतुर्थः सर्गः 201 अतितमामिति / तस्या भैम्याः आननं, स्मितलतस्य हासलेशस्य स्मरणेऽपि. किमुत करण इति भावः / अतितमामतिमात्रम् / 'किमेतिङ इत्यादिना अव्ययादा. म् प्रत्ययाः / जडाशयं मूढचित्तं, समपादि सम्पन्न, तदजं जातमित्यर्थः / 'चिण्ते पद:' इति कर्मतिक्षिण / तन्या ईक्षणमेव नयनमेव, खञ्जनः वञ्जरीटः, अपाङ्ग एव निजा. जाणं, तन्न भ्रमिभ्रमणं, तम्या: कणे लेशेऽपि सङ्गुरसमर्थः, अजनि जातः / 'दीपजन' इत्यादिना जनेः कर्तरि चिण ! घरवेगात् स्मित वीक्षणे लुपले इति भावः // 4 // ___ ( दमयन्ती ) का मख थोड़ी-सी मुस्कुराहट के स्मरण करने में भी जडनाको धारण किया (नाल-विरह से पीटित दमयन्तीने लशमात्र भी मुकुराना छोड़ दिया ) तथा उसका ने वरूपी खजन ( ख नरोट नामक पक्षी / उसके नेत्र खञ्जन पक्षी के तुल्य थे यह भी ध्वनित होता है ) नेवप्रान्त ए अपने आंगन में थोड़ा-सा भ्रमण करने में भी पङ्गु हा गया : दमयन्ती के नेत्रों ने विरह के कारण कटाक्षपूर्वक देखना भो छोड़ दिया): [अन्य मी कोई जड = Fखं शक्ति छोटो छोटी बातों को मो स्मरण करने में तथा लंगड़ा व्यक्ति अपने अर्थात् अतिनिकटवर्ती आंगन में थोड़ा भी घूमने में असमर्थ हो जाता है। नलविरह-पाडित दमयन्ती ने हंसना तथा कटाक्ष करना छोड़ दिया ] // 4 // किमु तदन्तरुभौ भिषजौ दिवः स्मरनलौ विशतः स्म विगाहितु / तदभिकेन चिकित्सितुमाशु तां मखभुजामधिपेन नियोजितौ / / 5 / / अथास्याः स्मरनलयोनिरन्तरान्तःप्रवेशमालचमोत्प्रेक्ष्यते-किम्चिति / तदभिः केन भैमीकामुकेना, 'अनुकामिकामीकः कमिता' इति निपातितः / मखभुजामधि. पेन देवेन्द्रण, तां भैमीमाशु चिकित्सितुमगदीकर्तु, नियोजितौ प्रेषितौ उभौ, दिवो भिषजौ स्ववद्यावश्विनौ, स्मरनलौ सन्तो, विगाहितुं रोगनिदानं निश्चेतुम, तस्याः दमयन्त्याः, अन्तरन्तश्शरीरं प्रविशतः स्म किम् / प्रविश्य स्थितावश्विनावेव तौ कि. मित्युप्रेता। तेनास्य मद नाश्विसमानसौन्दर्य व्यज्यते / अत्र चिन्ताख्यः सञ्चारी भा. वः सूचितः। 'प्यानश्चिन्तेपिसतानाप्तिः शून्यताश्वासतापकृत्' इति लक्षणात् // 5 // जो कामदेव तथा नलने दमयन्ती के अन्तःकरण ( हृदय ) में प्रवेश किया था, वह उस दमयन्तो के कामुक देवराज इन्द्र के द्वारा, शीघ्र चिकित्सा करने के किये ( या उसके मन्तः करण की स्थिति जानने के लिये) नियुक्त स्वर्ग के वैद्य अश्विनी-कुमार थे क्या? [यहां 'नलकी कान्ति अश्विनीकुमारके समान थी यह तथा माजा दमयन्ती-स्वयंवर में दमयन्तीको पलीरूप पाने के लिये इन्दका आगमन' वनित होता है। अन्य मी किमी सुन्दरीकाका व्यक्ति उसकी मनोवृत्ति के प्रतिकुन् , यानुकर यह जानने के लियेथ! उसके रोगी होने औपचार लगे वेचको भेजकर अपनी मनोमल पति वियो नलाग कराना कुसुम चापजतापसमाकुलं कमल कोमल मैक्ष्यत तन्नुखम् / अहरहवंहदभ्यधिकाधिका रविरुचिग्लपितस्य विधोविधाम् // 6 //