________________ 134 नैषधमहाकाव्यम् / सखियोंके हँसने पर थेड़ा क्रुद्ध तथा हंसको हाथसे नहीं पकड़नेसे कुछ लज्जित हुई श्यामा ( षोडशी ) दमयन्ती सूर्यके सामने जानेवाले व्यक्तिके पीछे उसकी श्यामवर्ण ( काली ) परछाहींके समान हंसके पीछे लग गयी ( हंसके पीछे-पीछे चलने लगी)॥ 8 // शस्ता न हंसाभिमुखी तवेय यात्रति ताभिश्छलहस्यमाना। साऽऽह स्म नैवाशकुनीभवेन्मे भावि प्रियावेदक एष हंसः // 6 // शस्तेति / तवेयं हंसस्य श्वेतच्छदस्य चाभिमुखी यात्रा गमनं न शस्ता न प्रशस्ता श्रेयस्करी न शास्त्रविरोधात् श्रमसन्तापदृष्टदोषाच्चेति भावः। इतीत्थं ताभिः छलेन व्याजोक्त्या हस्यमाना सती भाविप्रियावेदको मङ्गलमूर्त्तित्वादागामिशुभसूचकः एष हंसो मे मम नाशकुनीभवेदेव, किन्तु शकुनमेव भवेदित्यर्थः / अपक्षी न भवेदिति च गम्यते 'शकुनन्तु शुभाशंसानिमित्ते शकुनः पुमानि'ति विश्वः / 'अभू. ततद्भावे विः' विध्यादिसूत्रेण प्रार्थने लिङ् / इत्याह स्म अवोचत् , 'ब्रुवः पञ्चानामि' त्याहादेशः / एतेन तदीययात्रानिषेधोक्तदोषः परिहृतो वेदितव्यः // 9 // ___ 'हंस ( मराल = राजहंस पक्षी, पक्षा०-सूर्य) के सम्मुख तुम्हारा यह गमन करना श्रेष्ठ ( अभीष्ट फलप्रद ) नहीं है। इस प्रकार उन ( सखियों ) के द्वारा हँसी गयी उस दमयन्तीने कहा कि भविष्यमें प्रिय ( शुभ ) की सूचना देनेवाला ( पक्षा०-भविष्यमें होने वाले प्रिय ( नल ) की सूचना देनेवाला ) यह हंस अशकुनि ( पक्षी भिन्न, पक्षा०-अशुभ सूचक शकुनवाला ) नहीं है अर्थात् यह पक्षी ही है, जिसके सम्मुख यात्रा करना निषिद्ध है, वह सूर्य नहीं हैं // 9 // हंसोऽप्यसौ हंसगतेस्सुदत्याः पुरःपुरश्चारु चलन बभासे / वैलक्ष्यहेतोर्गतिमेतदीयामग्रेऽनुकृत्योपहसन्निवोच्चैः / / 10 // एवं दमयन्तीव्यापारमुक्त्वा सम्प्रति हंसस्य व्यापारमाह-हंसोऽपीति / असौ हंसोऽषि हंसस्य गतिरिव गतिर्यस्यास्तस्याः सुदत्याः शोभनदन्तायाः भैम्याः, सुदती व्याख्याता / पुर-पुरः वीप्सायां द्विर्भावः / अग्रे समन्तात् , चारु चलन् रम्यं गच्छन् सन् वलक्ष्यमेव हेतुस्तस्य वैलक्ष्यहेतोः, अहो मामयमतिविडम्बयतीति तस्या अपि विस्मयजननार्थमित्यर्थः / 'विलक्षो विस्मयान्वित' इत्यमरः / 'षष्टी हेतु. प्रयोग' इति षष्ठी / एतदीयाङ्गतिमनुकृत्य अभिनीय उच्चैरुपहसन्निवेत्युत्प्रेक्षा, बभासे बभौ लोके परिहासकाः तच्चेष्टाद्यनुकरणेन परान् विलक्षयन्ति // 10 // यह हंस भी हंसगामिनी एवं सुदती (सुन्दर दाँतोंवाली दमयन्ती) के आगे-आगे सम्यक् प्रकारसे चलता हुआ उसे लज्जित (या-आश्चर्यचकित ) करनेके लिए इस (दमयन्ती ) के चलनेका अनुकरण कर उसे सम्यक् प्रकारसे हँसता हुआ-सा शोभित हुमा / [ लोकमें भी कोई व्यक्ति किसीको लज्जित ( या-'अहो ! यह भी मेरा अनुकरण 1. 'पुनस्ते' इति 'प्रकाश' व्याख्यातः पाठः /