________________ नैषधमहाकाव्यम् / श्रम करती हो ? ) / [हंस दमयन्तीसे समझता हुआ कहता है कि-'तुम कहाँ तक आवोगी ?, किसी महत्त्वपूर्ण वस्तु के लिए दूर जाना सङ्गत होनेपर भी एक पक्षीके लिए इतना अधिक परिश्रम करना ठीक नहीं, सुवर्णमय पक्षीके लिए उत्कण्ठित होकर इतनी दूर तक आना एवं परिश्रम करना यथा कथञ्चित् उचित होने पर भी बाला ( स्वयं अप्रौढ़ या-नवीन-अप्रौढ सखियों वाली ) तुमको सघन वन-समूहोंको देखकर भय उत्पन्न होना चाहिये; इस प्रकार तुम इस कार्य में प्रवृत्त मत होवो, लौट जावो' // 13 / / वृथाऽर्पयन्तीमपथे पदं त्वां मरुल्ललत्पल्लवपाणिकम्पैः / आलीव पश्य प्रतिषेधतीयं कपोतहङ्कारगिरा वनालीः // 14 // वृथेति / वृथा व्यर्थमेव न पन्था अपथम्, 'ऋकपूरि'त्यादिना समासान्तः अः, 'अपथं नपुंसकम्' / तस्मिन्नपथे दुर्मार्गे अकृत्ये च पदं पादं व्यवसायं च अर्पयन्ती 'पदं व्यवसितत्राणस्थानलक्ष्माद्धिवस्तुष्वि'त्यमरः / मरुता ललन् चलन् पल्लव एव पाणिस्तस्य कम्पैः कपोतहुकारगिरा च वनाली आलीव सखीव प्रतिषेधति निवारयति, पश्य इति वाक्यार्थः कर्म / यथा लोके अमार्गवृत्तं सुहृजनः पाणिना वाचा च वारयति तद्वदित्यर्थः / अत एव पल्लवपाणीत्यादौ रूपकाश्रयणम् तत्सङ्कीर्णा वनाल्यालीवेत्युपमा // 14 // यह वनपङ्क्ति वायुसे विलास करते हुए पल्लवरूपी हाथोंके कम्पनोंसे एवं कबूतरोंके 'हुङ्कार'रूप वाणीसे वेराह चलती हुई तुमको सखीके समान रोक रही है, यह तुम देखो // धायः कथंकारमहं भवत्या वियाहारी वसुधैकगत्या / अहो शिशुत्वं तव खण्डितं न स्मरस्य सख्या वयसाऽप्यनेन / / 17 / / धार्य इति / एकत्रैव गतिर्यस्यास्तया एकगत्या वसुधायामेकगत्या भूमात्रचारिण्येत्यर्थः / शिवभागवतवत्समासः / भवत्या वियद्विहारी खेचरोऽहं कथङ्कारं कथमित्यर्थः / 'अन्यथैवं कथमित्थंसुसिद्धाप्रयोगश्चेदि'ति' कथंशब्दोपपदात्करोतेर्णमुल / धार्यों धतुं ग्रहीतुं शक्य इत्यर्थः / 'शकि लिङ्चेति चकाराच्छक्यार्थे कृत्यप्रत्ययः। अनेन स्मरस्य सख्या सखिना तदुद्दीपकेन वयसा यौवनेन सखिशब्दस्य भाषितपुस्कत्वात् पंवद्भावः / न खण्डितं न निवर्तितम् अहो विरुद्धवयसोरेकत्र समावेशादाश्चर्यमित्यर्थः अत्राधार्यत्वस्य वसुधागतिवियद्विहारपदार्थहेतुकत्वादेकः काव्यलिङ्गभेदस्तथा शंशवाखण्डनस्य पूर्ववाक्यार्थहेतुकत्वादपर इति सजातीयसङ्करः // 15 // ___ केवल पृथ्वी पर चलनेवाली तुम आकाशमें विहार करनेवाले ( इच्छापूर्वक चलनेवाले मुझको किस प्रकार पकड़ सकती हो ? अर्थात् कथमपि नहीं पकड़ सकती। आश्चये है कि कामदेवके मित्र इस अवस्था ( युवावस्था ) ने तुम्हारे बचपनको नहीं दूर किया अर्थात् युवावस्थाके आनेपर भी तुम्हारा बचपन नहीं गया, यह आश्चर्य है। ( अथवा-कामदेवतुल्य नलके मित्र इस पक्षीने अर्थात् मैंने तुम्हारे बचपनको खण्डित नहीं किया ?