________________ द्वितीयः सर्गः 113 कलुषित = रुष्ट तथा नहीं सोनेवाली ) बावली हठयुक्त मानिनी नायिका के समान सारी रातमें भी नहीं प्रसन्न ( स्वच्छ जलवाली, पक्षा०-खुश ) हुई। [ सपत्नी आदिके कुकुमादि रागसे चिह्नित पतिको देखकर दूषित चित्तवाली एवं रातमें नहीं सोनेवाली अतिहठी मानिनी नायिका पतिके सारी रात अनुनयादि करने पर भी जिस प्रकार नहीं खुश होती है, उसी प्रकार सुदतियोंके स्नान करते समय-धुले हुए स्तनादिके कुङ्कुमरागसे कलुषित जलवाली बावरी सारी रात बीतने पर भी निमल नहीं हुई ] // 77 / / क्षणनीरवया यया निशि श्रितवप्रावलियोगपट्टया / मणिवेश्ममयं स्म निर्मलं किमपि ज्योतिरवाह्यमीक्ष्यते' ||78 / / क्षणेति / निशि निशीथे क्षणं नीरवया एकत्र सुप्तजनत्वादन्यत्र ध्यानस्तिमितत्वान्निःशब्दमाश्रितः प्राप्तः वप्रावलिः योगपट्ट इव अन्यत्र वप्रावलिरिव योगपट्टो यथा सा तथोक्ता यया नगर्या मणिवेश्ममयं तद्रूपं निर्मलमबाह्यमन्तर्वति किमपि अवाङ्मनसगोचरं ज्योतिः प्रभा आत्मज्योतिश्च ईच्यते सेव्यते स्म / अत्र प्रस्तुतनगरीविशेषसाम्यादप्रस्तुतयोगिनीप्रतीतेः समासोक्तिः // 78 // रात्रिमें क्षणमात्र ( कुछ समय तक ) निःशब्द तथा चहारदिवारी रूप योगपट्टको धारण की हुई जो ( कुण्डिन नगरी) मणियोंके बने महलरूप निर्मल एवं अनिर्वचनीय आभ्यन्तर प्रकाशको देखती है / [अन्य भी कोई योग साधनेवाली योगिनी कुछ समयतक मौन धारण कर योगपट्टको पहनी हुई वाङ्मनसागोचर निर्मल आत्मलक्षण आभ्यन्तर ज्योतिको देखती है / अथवा-परमात्म-साक्षात्काररूप क्षण अर्थात् उत्सवसे सात्त्विक भावजन्य अश्रुजल को प्राप्त करनेवाली एवं योगपट्ट धारण की हुई...... ] / / 78 / / विल लास जलाशयोदरे कचन द्यौरनुबिम्बितेव या।। परिखाकपटस्फुटस्फुरत्प्रतिबिम्बानवलम्बिताम्बुनि // 7 // विललासेति / या नगरी परिखायाः कपटेन व्याजेन स्फुटं परितो व्यक्तं तथा स्फुरता प्रतिबिम्बनावलम्बितं मध्ये चागृह्यमाणं चाम्बु यस्मिन् तस्मिन् प्रतिबिम्बाक्रान्तमम्बु परितः स्फुरति प्रतिबिम्बदेशेन स्फुरति तेनैव प्रतिबिम्बादिति भावः क्वचन कुत्रचिजलाशयोदरे हृदमध्ये कस्यचित् हृदस्य मध्य इत्यर्थः / अनुबिम्बिता प्रतिबिम्बिता द्यौरमरावतीव विललासेत्युत्प्रेक्षा // 79 // ___ जो ( कुण्डिन नगरी ) खाईके कपटसे स्पष्ट स्फुरित होते हुए प्रतिबिम्बसे निराधार जल वाले कहीं जलाशयके बीचमें प्रतिबिम्ब हुए स्वर्ग के समान शोभती थी। [बड़े भारी जलाशयके बीच में प्रतिबिम्बित स्वर्गरूप छोटी वस्तुके समान खाईके जलमें स्थित वह कुण्डिनपुरी शोभती थी ] // 79 // 1. 'मिज्यते' इति 'प्रकाश' सम्मतः पाठः।