________________ 124 नैषधमहाकाव्यम् / .. ( माणिक्य रत्नोंसे बने हुए जिस ( कुण्डिन नगरी ) के भवन दिनमें समीपस्थ सूर्य से अधिक प्यासयुक्त होकर अपनी ( भवनोंकी ) कान्तिसे लाल ( जिह्वा स्थानीग) पताकाओंसे रात्रिमें अनेक प्रकारसे चन्द्रमाका आस्वादन करते हैं। [ दिनमें सूर्य-सन्तप्त व्यक्ति जिस प्रकार रात्रिमें शीतलोपचारसे अपना सन्ताप दूर करता है, उसी प्रकार अत्यधिक ऊँचे होनेसे नगरीके ये भवन दिनमें सूर्य के अत्यन्त समीप होनेसे अधिक पिपासायुक्त होकर भवन-कान्तिसे लाल पताका रूपिणी जीभसे रातमें शीतल चन्द्रमाका आस्वादन करते हैं ] // 99 // लिलिहे स्वरुचा पताकया निशि जिह्वानिभया सुधाकरम् / श्रितमकरैः पिपासु यन्नृपसद्भामलपद्मरागजम् // 100 // अथानयैव भङ्ग-या राजभवनं वर्णयति-लिलिह इति / अमल पद्मरागजं यस्यां नगर्यां नृपसद्म राजभवनम् अर्ककरैः श्रियमतिसामीप्यादभिव्याप्तम् / श्रयतेः कर्मणि क्तः, शृणातेः पक्वार्थादिति केचित् / तदा ह्रस्वश्चिन्त्यः, प्रकृत्यन्तरं मृग्यमित्यास्तां तत् / अत एव पिपासु तृषितं सत् पिबतेः सन्नन्तादुप्रत्ययः। स्वकीया रुग् यस्याः तया स्वरुवा तषितयेत्यर्थः / अत एव जिह्वानिभया पताकया सुधाकर लिलिहे आस्वादयामास। लिहे कर्त्तरि लिट् / त्वरितत्वादात्मनेपदम् अलङ्कारश्च पूर्ववत् , जिह्वानिभयेत्युपमा सङ्करश्च विशेषः // 10 // - ( उसी विषयको पुन: कहते हैं-) पद्मराग मणियोंसे बना हुआ जिस नगरीका निर्मल राजभवन ( दिनमें ) सूर्य-किरणोंसे पिपासायुक्त होकर अपनी ( राजभवनकी) कान्तिवाली, अर्थात् रक्तवर्ण जिह्वातुल्य पताकासे रात्रिमें चन्द्रमाका आस्वादन करता है। अमृतधतिलदम पीतया मिलितं यद्वलभीपताकया / वलयायितशेषशायिनस्सखितामादित पीतवाससः // 101 / / अमृतेति / पीतया पीतवर्णया यस्या नगर्याः वलभ्यां 'कूटागारन्तु वलभि'रित्यमरः। पताकया मिलितं सामीप्यान्सङ्गतममृतद्युतिलक्ष्म चन्द्रलाञ्छनं वलया. यिते वलयीभूते शेषे शेत इति तच्छायिनः पीतवाससः पीताम्बरस्य विष्णोः सखितां सदृशतामादित अग्रहीदित्युपमालङ्कारः // 101 // जिस ( कुण्डिन नगरी ) के छज्जेका पीली पताकासे मिला हुआ चन्द्रमाका कलङ्क मण्डलाकार शेषनाग पर सोये हुए पीताम्बर पहने श्रीविष्णुके समान ज्ञात होता है। [ कलङ्कके साथ श्रीविष्णु भगवान्की, पीली पताकाके साथ पीताम्बरकी, कलङ्कके चारों ओर स्थित चन्द्रमाके साथ मण्डलाकार (गेरुडी बांधकर ) स्थित शेषनागकी समानता की गयी है / इस पे भवनोंका अत्युन्नत होना सूचित होता है ] // 101 // अश्रान्तअतिपाठपूतरसनाविभूतभूरिस्तवा. जिब्रह्ममुखौषधिनितनवस्वगक्रियाकेलिना /