________________ 126 नैषधमहाकाव्या जिस ( कुण्डिनपुरी ) के अत्यन्त निर्मल नीलमके बने हुए महलोंकी किरणोंसे भ्रमरतुल्य की गयी (घूमती हुई ) कान्तिवाली स्वच्छ महलोंकी पताका सूर्यके समीप (पक्षा०क्रोड = गोद ) मैं चञ्चल तथा लोटती हुई यमुनाके शैशवको प्राप्त किया अर्थात् पिता सर्यके समीप चञ्चल तथा लोटती हुई बालिका यमुना के समान उक्तरूपा पताका शोभती थी / / 103 // स्वप्राणेश्वरनर्महर्म्यकटकातिथ्यग्रहायोत्सुकं पाथोदं निजकेलिसौधशिखरादारुह्य यत्कामिनी / साक्षादप्सरसो विमानकलितव्योमान एवाभव द्यन्न प्राप निमेषमभ्रतरसा यान्ती रसादध्वान / / 104 / / स्वेति / यत्कामिनी यन्नगराङ्गना विमानेन कलितं क्रान्तं व्योम याभिस्ताः साक्षादप्सरसो दिव्याङ्गनेवाभवत्। 'स्त्रियां बहुप्वप्सरस' इत्यभिधान देकत्वेऽपि बहुवचनप्रयोगः कृतः, यद्यस्मानिजकेलिसौधशिखरादपादानात् स्वप्राणेश्वरस्य नर्महम्य क्रीडासौधं तस्य कटकान्नितम्बादातिथ्यग्रहाय स्वीकाराय तत्र विश्रमार्थमि. त्यर्थः। उत्सुकमुद्यक्तं गच्छन्तमित्यर्थः, पाथोदं मेघमारुह्य रसादागाद् यान्ती गच्छन्ती अध्वनि अभ्रतरसा मेघवेगेन हेतुना निमेषं न प्राप / अत्र नगरामराङ्गनयोर्भेदेऽपि अनिमेषमेघारोहणव्योमयानैः सैव इत्यभेदोक्तेरतिशयोक्तिभेदः। शार्द. लविक्रीडितं वृत्तम् // 104 // जिस ( कुण्डिनपुरी) की कामिनी अपने क्रीडाप्रासादकी चोटी (ऊपरी छत ) से अपने प्राणप्रियके क्रीडाप्रासादके आतिथ्य-ग्रहण (विश्राम ) करने के लिए उत्कण्ठित अर्थात् जाते हुए मेघपर आरूढ होकर अनुरागसे जाती हुई मेघ-वेगके कारण पलकको नहीं गिराया, अतएव विमानके द्वारा आकाशका अवलम्बन की हुई वह मानो साक्षात् अप्सरा ही हो गयी। [ जिस नगरीको कामिनी अपने क्रीडा-प्रासादके अत्युन्नत ऊपरी छतसे उस मेघपर चढ़ जाती है, जो मेघ उस कामिनीके प्राणेश्वरके क्रीडा-प्रासाद पर विश्राम करना चाहता है अर्थात् वहीं होकर जाता है, और मेघके वेगके कारण उसे निनिमेष ( एकटक ) देखती है, अतएव वह कामिनी विमानसे आकाशमें स्थित साक्षात् अप्सरा ही हो जाती है / उस कुण्डिनपुर की कामिनियोंके तथा उनके प्राणेश्वरोंके क्रीडाप्रासाद अत्युन्नत हैं, तथा कामिनियां अप्सराओंके समान सुन्दरी हैं ] / / 104 / / वेदीकालशैले मरकतशिखरास्थितरंशुदर्भ ब्रह्माण्डाघातभग्नस्यदजमदतया ह्रीधृतावामुखत्वैः। कस्या नोत्तानगाया दिवि सुरसुरभेरास्यदेशं गता] यद्रोग्रासप्रदान व्रतसुकृतमविश्रान्त मुज्जम्भते स्म // 15 // वैदर्भीति / 'उत्साना वै देवगवा वहन्ती'ति श्रुत्यर्थमाश्रित्याह-वेदीकेलिशैले मरकतशिखरादुस्थितैः अथ ब्रह्माण्डाघातेन भन्नो स्यदजमदो वेगगर्वो येषां तत्तथा