________________ 116 नैषधमहाकाव्यम् / ऐसा ज्ञात होता हो / [उक्त पुतलियोंके मुखचन्द्रमें कलङ्क मृग होना चाहिये, किन्तु वे मृग मुखचन्द्रोंमें नहीं हैं, अत एव ज्ञात होता है कि महलोंके मध्यभागमें बने सिंहोंने उन मृगों को अपने उदरमें ले लिया-खा लिया है ] // 83 // बलिसद्मदिवं स तथ्यवागुपरि स्माह दिवोऽपि नारदः / अधराय कृता ययेव सा विपरीताऽजनि भूमिभूषया // 84 // बलीति / स प्रसिद्धः तथ्यवाक् सत्यवचनः 'नारदः बलिसद्मदिवं पातालस्वर्ग दिवो मेरुस्वर्गादप्युपरिस्थितामुत्कृष्टाञ्चाह स्म उक्तवान् / अथेदानी भूमिभूषया यया नगर्या अधरा न्यूना अधस्ताच्च कृतेवेत्युत्प्रेक्षा सा बलिसद्मद्यौविपरीता नारेदोक्तविपरीता अजनि / सर्वोपरिस्थितायाः पुनरधः स्थितिः वैपरीत्यम् // 84 // सत्यवक्ता नारद मुनिने 'पातालरूप स्वर्ग, स्वर्गसे भी ऊपर (पक्षा०-अधिक रमणीय ) है' यह ठीक ही कहा था, क्योंकि पृथ्वीको भूषणरूपिणी जिस ( कुण्डिनपुरी ) से नीचे ( अधो भागमें, पक्षा०-अपनी शोभासे हीन ) किया गया वह ( पातालरूपी स्वर्ग ) विपरीत-सा हो गया / [ पहले भूलोक तथा स्वर्गलोकसे पाताल ऊपर था, किन्तु इस समय अतिरमणीयतासे हीन होनेके कारण विपरीत हो गया। स्वर्गलोकसे पाताललोक सुन्दरतामें अधिक है, इस कारण 'वह स्वर्गसे ऊपर है' ऐसा नारदने विष्णुपुराणमें कहा है और अब भूलोकस्थ इस कुण्डिन नगरीसे सौन्दर्य में हीन किये जानेके कारण वह पाताललोक भी नीचे ( हीन ) हो गया / स्वर्ग तथा पाताल-दोनों लोकोंसे यह कुण्डिनपुरी रमणीय है / / 84 / / प्रतिहट्टपथे घरट्टजात् पथिकाहानदसक्तुसौरभेः / / कलहान्न घनान यदुस्थितादधुनाप्युज्झति घर्घरस्वरः / / 85 // प्रतीति / पन्थानं गच्छन्तीति पथिकाः तेषामाह्वानं ददाति तथोक्तमाह्वकम् अध्वानं गच्छतामाकर्षकमित्यर्थः। सक्तूनां सौरभं सुगन्धो यस्मिन् प्रतिघट्टपथे प्रत्यापणपथे। 'अव्ययं विभक्ती'त्यादिना वीप्सायामव्ययीभावः / 'तृतीयासप्तम्योबहुल'मिति सप्तम्या अमभावः / घरट्टाः गोधूमचूर्णग्रावाणः तज्जात् यस्या नगर्याः उत्थितात् कलहात् घर्घरस्वनः निर्झरस्वरः कण्ठध्वनिः घनान् मेघान् अधुनापि नोज्झति न त्यजति / सर्वदा सर्वहट्टेषु घरट्टा मेघवानं ध्वनन्तीति भावः। अत्र घनानां घरट्टकलहासम्बन्धेऽपि सम्बन्धोक्तरतिशयोक्तिः। तथा च घर्घरस्वनस्य तद्धेतुकत्वोत्प्रेक्षा, व्यञ्जकाप्रयोगाद् गम्योत्प्रेक्षेति सङ्करः // 85 // प्रत्येक बाजार के मार्गों में चक्कियोंसे निकला हुआ सत्तुओंके सुगन्धवाला घघर शब्द (बरसात आनेसे घर पर जाते हुए ) पथिकोंको आकृष्ट करता था, उधर मेघ गरज-गरज 1. 'भूविभूषया' इति 'प्रकाश' सम्मतः पाठः / 2. 'स्वर्गादप्यतिरमणीयानि पातालानि' इति विष्णुपुराणे नारदवचनमिति 'प्रकाश'कृत् /