________________ द्वितीयः सर्गः 211 समुद्र की पत्नी आकाश गङ्गा भी कुण्डिनपुरीके महलोंके छतों पर-जड़े हुए चन्द्रकान्त मणियों के पसीजनेसे जलपूर्ण होकर अपने पति समुद्र के हर्षसे बढ़ने पर स्वयं भी हर्षसे बढ़कर पातिव्रत धर्मका पालन करती है, पतिके हर्ष होनेपर हर्षित होना तथा दुःखी होने पर दुःखी होना पतिव्रता स्त्रीका धर्म है। कुण्डिनपुरीके महलोंके छतमें चन्द्रकान्तमणि जड़े हुए हैं और चन्द्रोदय होने पर उनके पसीजनेसे बहते हुए पानीसे आकाश गङ्गा जलपूर्ण हो जाती है, अत एव आकाश गङ्गासे भी ऊँचे इस कुण्डिनपुरीके छतोंका होना सूचित होता है ] // 89 // रुचयोऽस्तमितम्य भास्वतः स्वलिता यत्र निराल पाः खलु / अनुमागमविलेपारण कश्मीरजपण्णाश्रयः / / 6 / / रुचय इति / यत्र नगर्यामनुसायं प्रतिसायं वीप्सायामव्ययीभावः। विलेपना. पणेषु सुगन्धद्रव्यनिपद्यासु कश्मीरजानि कुङ्कमान्येव पण्यानि पणनीयद्रव्याणि तेषां वीथयः श्रेणयः अस्तमितस्यास्तङ्गतस्य भास्वतः सम्बन्धिन्यः स्खलिताः अस्तमयक्षोभात् च्युताः अतएव निरालया निराश्रया रुचयः प्रभाः अभुः खलु, कथञ्चिप्रच्युताः सायन्तनार्कत्विष इव भान्ति स्मेत्यर्थः / कुङ्कमराशीनां तदा तत्सावादियमुत्प्रेक्षा व्यञ्जकाप्रयोगाद्गम्या / भातुर्लङि झेजसादेशः // 90 // जिस ( कुण्डिन नगरी ) में प्रत्येक सायकालमें लेप-सामग्रियोंके बाजार में बिकने वाले कुङ्कुमके मार्ग अस्तङ्गतसूर्यकी गिरी हुई निरवलम्ब किरणोंके समान शोभती थीं। [ सायंकालमें कुण्डिनपुरीके लेप विकनेवाले बाजारमें कुङ्कुम बिकनेवाले मार्ग गिरे हुए कुङ्कुमोसे रजित होनेके कारण ऐसे प्रतीत होते थे कि अस्तगत सूर्यकी लाल-लाल किरणे निराश्रय होनेसे भूमिपर गिर गयी हैं ] // 90 // विततं वणिजापणेऽखिलं पणितुं यत्र जनेन वीक्ष्यते / मुनिनेव मृकण्डुसूनुला जगतीवस्तु पुरोदरे हरेः / / 61 / / विततमिति / यत्र नगर्यां वणिजा वणिग्जनेन पणितं व्यवहर्तमापणे पण्यवीथ्यां विततं प्रसारितमखिलं जगत्यां लोके स्थितं वस्तु पदार्थजातं पुरा पूर्व हरेविष्णोरुदरे मृकण्डुसूनुना मुनिना मार्कण्डेयेनेव जनेन लोकेन वीक्ष्यते विष्णूदरमिव समस्तवस्त्वाकरोऽयमवभासत इत्यर्थः / पुरा किल मार्कण्डेयो हरेरुदरं प्रविश्य विश्वं तत्राद्राक्षीदिति कथयन्ति // 91 // जिस ( कुण्डिनपुरी ) में व्यापारियोंकी दुकानों पर देखने के लिए फैलायी हुई समस्त वस्तुओंको लोग उस प्रकार देखते हैं; जिस प्रकार मार्कण्डेय मुनिने पहले विष्णु भगवान्के उदर में पृथ्वीको समस्त वस्तुओंको देखा था / [प्रत्येक दुकानदारकी दुकान में संसार भरकी समस्त वस्तुएँ रक्खी हुई थीं ] // 91 //