________________ 110 नैषधमहाकाव्यम् / उड़नेवाले पक्षियोंने एक दृष्टिसे देखा / [ जब वह राजहंस वेगसे बहुत ऊँचा उड़ रहा था, तब उसके नीचे उड़नेवाले पक्षी राजहंसके पङ्खोंकी झनकारसे उसे अपने ऊपर झपटने वाला 'बाज' समझकर झट और नीचे हो गये तथा भयसे उस हंसको एक दृष्टिसे देखे भयार्तका अपने आक्रान्ताको एक दृष्टिसे देखनेका स्वभाव होता है ] // 70 // ददृशे न जनेन यन्नसौ भुवि यच्छायमेवक्ष्य तत्क्षणात् / दिवि दिक्षु वितीर्णचक्षुषा पृथुवेगद्रुतमुक्तहक्पथः / / 71 / / ददृश इति / यन् गच्छन् , इणो लटः शत्रादेशः, असौ हंसः भुवि तच्छायं तस्य हंसस्य च्छायां 'विभाषा सेनेत्यादिना नपुंसकत्वम् / अवेक्ष्य तत् क्षणात् प्रथम दिशि पश्चात् दिक्षु च वितीर्णचक्षुषा दत्तदृष्टिना * जनेन पृथुवेगेन द्रुतं शीघ्रं मुक्तहक्पथः सन् न ददृशे न दृष्टः / क्षणमात्रेण दृष्टिपथमतिक्रान्त इत्यर्थः / / 71 // पृथ्वीपर उस राजहंसकी परछाई को देखकर तत्काल आकाशमें सब ओर देखनेवाले लोगोंने, तीव्र वेगसे शीघ्र ही दृष्टिसे अतिक्रान्त ( ओझल ) हुए उस राजहंसको नहीं देखा / [ नीचे छाया देखनेके उपरान्त ही ऊपर देखनेपर भी उस हंसके नहीं दिखलायी पडनेसे नल-कार्य-सिद्धयर्थ शीघ्र कुण्डिनपुरीमें पहुँचनेके लिए उसकी गति का तीव्रतम होना सूचित होता है ] // 71 // न वनं पथि शिश्रियेऽमुना कचिदप्युच्चतरदुचारुतम् / न सगोत्रजमन्ववादि वा गतिवेगप्रसरदूचा रुतम् / / 72 / / नेति / गतिवेगेन प्रसरचा प्रसपत्तेजसा अमुना हंसेन क्वचिदपि उच्चतराणामस्युन्नतानां द्रूणां द्रुमाणां चारुता रम्यता यस्मिंस्तत्वनं न शिश्रिये / सगोत्रज बन्धुजन्यं रुतं कूजितं वा नान्ववादि नानूदितम् / मध्यमार्गे अध्वश्रमापनोदनं बन्धुसम्भाषणादिकमपि न कृतमिति सुहृस्कार्यानुसन्धानपरोक्तिः / 'पलाशो दुद्रुमागमा' इत्यमरः // 72 // वह ( राजहंस ) मार्गमें कहीं भी अत्यन्त ऊँचे पेड़ोंसे सुन्दर वन में नहीं ठहरा और गमनके वेगसे बढ़ती हुई शोभावाले पक्षियोंके कूजनेका अनुवाद नहीं किया अर्थात् उड़ते हुए इसे देखकर दूसरे पक्षियोंके बोलने पर भी नहीं बोला / [ उड़ते हुए पक्षियोंका यह स्वभाव होता है कि मार्गमें सुन्दर ऊँचे पेड़ों वाले सुन्दर वनको पाकर वहीं ठहर जाते हैं तथा अपने सजातीय पक्षियोंके बोलनेपर उनके उत्तरमें बोलते हैं, किन्तु कुण्डिनपुरीको लक्ष्यकर जाते हुए राजहंसने उक्त दोनों कार्य नहीं किये, अत एव कार्यको शीघ्र सिद्ध करनेके लिए इसका तीव्र गतिसे उड़ना उचित होता है ] // 72 // ___ अथ भीमभुजेन पालिता नगरी मञ्जरसौ धराजिता / पतगस्य जगाम दृक्पथं हरशैलोपमसौधराजिता // 73 / / अथेति / धराजिता भूमिजयिना 'सत्सूद्विषे'त्यादिता विपि सुक् भीमस्य भीम