________________ द्वितीयः सर्गः पृथक् रहने पर भी शिवजीकी चूडामें स्थित कला ( चन्द्रकला) को कौन नहीं जानता ? अर्थात् चन्द्रमासे पृथक् शिवचूडा स्थित कला भी जिस प्रकार चन्द्रकला ही कहलाती है, उसी प्रकार जलनिधि समुद्रसे नहीं उत्पन्न होने पर भी गुण समुद्र भीमसे उत्पन्न हुई उस दमयन्तीको आप साक्षात् लक्ष्मी ही जानें // 19 // चिकुरप्रकरा जयन्ति ते विदुषी मूर्द्धनि सा बिभर्ति यान् / / पशुनाऽप्यपुरस्कृतेन तत्तुलनामिच्छतु चामरेण कः // 20 // निकुरप्रकरा इति / चिकुरप्रकराः केशसमूहाः जयन्ति सर्वाकर्षेण वर्तन्ते, यान् वेत्तीति विदुषी विशेषज्ञा 'विदेः शतुर्वसुः 'उशितश्चेति लोप 'वसोः सम्प्रसारणम् / सा दमयन्ती मूर्द्धनि विमति, विद्गृह एय सवस्याप्युत्कर्षहेतुरिति भावः / अत. एव पशुना तिरश्वा चमरीमृगेणाप्यपुरस्कृतेनानारसेन चामरेण चमरीपुच्छेन सह तत्तलनान्तेषां चिकुराणां समीकरणं क इच्छतु ? न कोऽपीत्यर्थः / सम्भावनायां लोट / अत्र तुलनानिषेधस्यापुरस्कृतपदार्थहेतुकत्वारपदार्थहेतुकं काध्यलिङ्गम, 'हेतो. क्यपदार्थत्वे काव्यलिङ्गमुदाहृतमिति लक्षणात् // 20 // पण्डिता वह दमयन्ती जिन केश-समूहों को सिर पर धारण करती है, वे विजयो होवें पशु ( चमरी गाय ) से भी भागे नहीं किये गये अर्थात् पीछे धारण किये गये चामरसे उस (दमयन्ती-केश-समूहों ) की समानता कौन करना चाहे ? अर्थात् कोई नहीं / [ मूर्खा चमरी गायें भी जिन चामरगत केश समूहों को हीन गुण समझकर पीछे धारण करती हैं, उन चामरगत केश-समूहों के साथ दमयन्तीके केश-समूहों की समता कौन करना चाहेगा ? जिन्हें पण्डिता दमयन्ती सब अङ्गों में उत्तम अङ्ग अपने मस्तक पर धारण करती हैं / दम. यन्ताका केश-समूह चामरसे बहुत ही श्रेष्ठ है ] // 20 // स्वदृशोजनयन्ति सान्त्वनां खुरकण्डूयनकैतवान्मृगाः। जितयोरुदयत्प्रमीलयोस्तदखर्वेक्षणशोभया भयात् / / 21 // __ स्वरशोरिति / मृगाः हरिणास्तस्या दमयन्त्या अखर्वयोरायतयोरीक्षणयोरक्ष्णोः शोभया का जितयोरत एव भयादुदयाप्रमीलयोहरपथमाननिमीलनयोः स्वरशो. निजनयनयोः खुरैः शफैः 'शफं क्लीबे खुरः पुमानित्यमरः / कण्डूयनस्य कर्षणस्य कैतवाच्छलास्सान्त्वनां जनयन्ति लालनां कुर्वन्ति / यथ: लोके परपराजिता निमी. लितामाः स्वजनेभयनिवृत्तये करतलास्फालनादिना परिसायन्ते तद्वदिति भावः। अत्र कैतवशम्देन कण्डूयनमपह्नत्य साधनारोपाइपलवभेदः // 27 // उस दमयन्ती के बड़े-बड़े नेत्रोंकी शोभासे जीते गये मत एव भयस मानो तन्द्रायुक्त होते हुए अपने नेत्रदयको खुरसे खुजलाने के कपटसे मृग सान्त्वना देते हैं। [ लोकमें भी प्रबल व्यक्तिसे पराजित होनेसे भय के कारण तन्द्रायुक्त होते हुए दुर्बल व्यक्तिको मारमीय जन हाथसे सहलाकर (छूकर ) सान्त्वना देते हैं। दमयन्तीके नेत्र मृगनेत्रोंसे भी बड़े बड़े तथा सुन्दर हैं ] // 21 //