________________ द्वितीयः सर्गः 85 मुदं किं न दास्यति हास्यस्येव / प्रयोजनान्तराभावेऽपि कौतुकावपि श्रोतम्यमिस्यर्थः, ददातेः लुट् // 15 // मेरा यह वचन यदि विचार करने में सुन्दर नहीं हो, तथापि इसे आपको सुनना चाहिये ( क्योंकि मनुष्य के समान ) यह पक्षीकी बोली है, इस कारण भी तोतेकी बोलीके समान यह आपको हर्षित नहीं करेगी क्या ? [ अर्थात् यह हंस मनुष्य के समान स्पष्ट बोल रहा है इस कौतुकसे भी यह मेरा बचन भापको इषित करेगा ही, त्यतः विचारमें सुन्दर नहीं होने पर भी इमे आप सुननेका कष्ट करें ] // 15 // स जयत्यरिसार्थसार्थकीकृतनामा किल भीमभूपतिः / यमवाप्य विदर्भभूः प्रभुं हसति द्यामपि शकभर्तृकाम् // 16 // ___ अथ यदन्यं तदाह-स इति / अर्थन मभिधेयेन सह बर्तत इति सार्थकम्, 'तेन सहेति तुल्ययोग' इति बहुचीहिः, 'वोपसर्जनस्येति सहशब्दस्य विकल्पात् समानः 'शेषाद्विभाषेति कप समासान्तः, ततश्विरभूततद्भावे। अरिसार्थेषु शत्रुस. वेषु सार्थकीकृतं नाम भीम इत्याख्या येन प तयोः च प्रसिद्धः बिभ्यस्यस्मादिति भीमः 'भियो म' इत्यपादानार्थे निपातनान्मप्रत्यय औणादिकः, भीम इति भूपतिः नृपः जयति किल सर्वोत्कर्षेण वर्तते खलु / विदर्भभूविंदर्भदेवाः यं भूपतिं प्रभु भर्तारमवाप्य श को भर्ता यस्यास्तां शकमर्तृको 'नयतश्चेति कपि धान्दिवमपि हसति, किमुतान्यमर्तृकदेशानियर्थः। स्त्रियो हि मरकर्षाद्धासं कुर्वन्तीति भावः। अम्र विदर्भभुवोऽपि हालासम्बन्धेऽपि सम्बन्धोवतेतिशयोकिः // 16 // शत्रु-समूहमें अपने नामको सार्थक करनेवाला वह लोकप्रसिद्ध राजा 'भीम' है, जिस पातको पाकर विदर्भभूमि इन्द्राधिपति वाली स्वर्गभूमिको भी हंसती है। 'भयङ्कर' इस अर्थवाले नामको रामा 'भीम'ने अपने शत्रु-समूहमें चरितार्थ कर दिया है / अर्थात् राजा मीम के नाममात्रसे शत्रु-समूह भयभीत हो जाता है, ऐसे विदर्भनरेश है // 16 // दमनादमनाक् प्रसेदुषस्तनयां तथ्यगिरस्तपोधनात् / वरमाप स दिष्टविष्टपत्रितयानन्यसदृग्गुणोदयामम् / / 17 // दमनादिति / स भीमभूपतिरमनागनल्पं प्रसेदुषो निजोपासनया प्रसन्नात् 'भाषायां सदवसद' इति सदेलिटः कस्वादेशः। दमनामनाख्यात् तथ्यगिरः अमोघव चनात् तपोधनाहः दिष्टानां कालानां विष्टपानां लोकानाच त्रितययोरनन्य. सहशीं गुणोदयां कालत्रये लोकत्रये चानन्यसाधारणप्रकर्षां तनयां दुहितरं वरमाप / वरत्वेन लब्धवानित्यर्थः / 'देवारते वरः श्रेष्ठे त्रिषु क्लीवे मनाकप्रिय' इत्यमरः // 17 // ( दमयन्ती के लोकोत्तर गुणकी प्रामाणिकताके लिए हंस पुराण-प्रसिद्ध इतिहासको कहता है- ) उस भीम रामाने अत्यन्त प्रसन्न, सत्यवक्ता एवं तपोधन 'दमन' ऋषिसे ( वर्तमान, भूत और भविष्यद् रूप ) तीनों काल तथा ( स्वर्ग, मयं और पाताल रूप)