________________ प्रथमः सर्गः। उशितस्थितिः त्यकमर्यादः ईडशः अनपराधपनिधारकः वं पतिः पालका, इत्थं खगाः निति प्रहाय नभ आश्रितास्तं नकमारवैहच्चध्वनिभिराचुकशः खलु। उह रोश्या सनिन्दोपालम्भनं चक्ररिवेत्युस्प्रेचा गण्या // 28 // _ 'हे मग ( राजन् नल ) यह पृथ्वी निवासके योग्य नहीं है, जिसके तुम मर्यादा छोड़नेपाळे ऐसे ( निरपराध इंसको पकड़नेवाले ) पति ( रक्षक या- स्वामी ) हो' इस प्रकार पृथ्वीको छोड़कर आकाश का माश्रय किये ये अर्थात् पृथ्वीसे आकाशमें उड़े हुए पक्षा अधिक शब्द कर नलकी निन्दा करने लगे। [ लोकमें मी लोग धनाधाम पूर्ण उपद्रवयुक्त देशका त्याग कर शून्य देशका आश्रय करते है ] / / 128 / / न जातरूपच्छदजातरूपता द्विजस्य दृष्टेयमिति स्तुवन् मुहुः। अवादि तेनाथ स मानसौकसा जनाधिनाथः करपारस्पृशा / / 126 / / नेति / इयमीहरजातरूपच्छदैः सुवर्णपक्षः जातरूपता उत्पमसौन्दर्य विजय परिणो न दृष्टा हिरण्मयः पक्षो न कुत्रापि हट इत्यर्थः। इति मुहुः स्तुवन् स ना. धिनाथः अथास्मिन्नन्तरे करपारस्पृशा तद्गतेन मानसं सरः मोकः स्थानं यस्येति सः तेन मानसौकसा हंसेन 'हंसास्तु श्वेतगरुतश्चक्राला मानसोकस' इत्यमरः / अवादि उक्तः / वदेः कर्मणि लुङ // 129 // ___ 'यह सोनेके पलोंसे उत्पन्न सुन्दरता पक्षीकी नहीं देखी गयी है।' इस प्रकार इसकी बार बार प्रशंसा करते हुए राजा नलसे करपारस्थ मानसरोवर निवासी वह इस बोला.... [मय च-ब्राह्मणकी सुवर्ण-सामगीसे उत्पन्न सुन्दरता कहीं नहीं देखी गयो है....... अर्थात् ब्राह्मण प्रायः इतने अधिक धनी नहीं होते कि सुवर्णसे इस प्रकार व्याप्त हो / हायको पञ्जर कहनेसे नलका हंसको ढीले हाथसे पकड़ना अतएव इंसका पीडित होना मुक्ति होता है ] / / 129 / / धिगस्तु तृष्णातरलं भवन्मनः समीक्ष्य पक्षान्मम हेमजन्मनः / तवार्णवस्येव तुषारशीकरभवेदमीमिः कमलोदयः कियान् || 130 / / __तदेव चतुर्भिराह-धिगित्यादि / हेम्नो जन्म येषां तान् हेमजन्मनो हैमान् मम पलान् पतत्राणि समीचय तृष्णातरलम् आशावशगं भवन्मनो धिगरिस्वति निन्दा 'घिनिर्भत्सननिन्दयोरि' स्यमरः / 'धिगुपर्यादिषु त्रिवि ति धिग्योगात् मन इति द्वितीया। तुषारशीकरैः हिमकणैरणवस्येव तव एभिः पक्षः कियान् कमलाया लषम्याः कमलस्य जलजस्य चोदयो वृद्धिर्भवेत् , न कियानित्यर्थः // 130 / / सुवर्णोत्पन्न मेरे पलों को देखकर होमसे चल तुम्हारे मनको धिक्कार है, समुद्रको ओसकी बूंदोंसे जलके समान समृद्धिमान् तुमको इन ( सुवर्णोत्पन्न पकों ) से कितनी धनकी वृद्धि होगी ? अर्थाव कुछ नहीं। [बिस प्रकार अथाह बसे पूर्ण तमुद का जक मोसकी बूंदों से कुछ भी नहीं बढ़ सकता, उसी प्रकार समस्तैश्वर्यसम्पन्न तुम्हारा धन इन