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[पुण्यपापकी व्याख्या लाख चौरासीके चक्करसे थका खोली कमर । अब रहा पाराम पाना, काम क्या वाकी रहा ? डाल दो हथियार मेरी राय पुखता अव हुई। लग गया पूरा निशाना, काम क्या बाकी रहा ? घोर निद्रासे जगाया सदगुरुने वाह ! वाह !! अब नहीं जगना-जगाना, काम क्या बाको रहा ? मानके मनमें मियाँ मौलाका मेला है यह सब । फिर बर्नु अब क्या मौलाना! काम क्या वाकी रहा ? जानकर तौहीदका मनशा शुवा सब मिट गया। यू ही गालोंका बजाना, काम क्या बाकी रहा ? एकमें कसरत व कसरतमें भी एक ही एक है। अब नहों डरना-डराना, काम क्या वाकी रहा ? द्वैत व अद्वैतके झगड़ेमें पड़ना है फिजूल ।
अव न दाँतोंको घिसाना, काम क्या वाकी रहा ? जिन्होंने करामलकवत् संसारके तत्त्वको लान लिया है, ज्ञानरूपी दीपक हृदयमे प्रकट कर चिन्नड-प्रन्थिको सुलझा लिया है, अविद्याका भार जो अनेक कल्पसे जीव अपने सर पर लादे हुए था उसको फैंक जो अब अनन्त विश्रामको प्राप्त हुए हैं, कर्तृत्व अहंकार जिनका गलित हुआ है और जो सब कुछ करके भी कुछ न करके रह रहे हैं। नैव क्रिश्चित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्वविद । पश्यन्मृणवनस्पृशञ्जिवनश्ननाच्छन्स्वपन्श्वसन् ।। १. अद्वैत
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