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[आत्मविलास हो सकता है और सार क्या है श्रसार क्या है ? इस विषकसे ही संसारके प्रति राग-धुद्धिका अभाव होकर घेराग्य उपज सकता है तथा उम वैराग्यवान हृदयमे ही मैं कौन हूँ ?? 'ससार क्या है ? 'यह कैसे उत्पन्न हुश्रा है ?' 'इसकी निर्यात कैसे हो सकती है १५ 'परमात्माका क्या स्वरूप है और यह कहाँ है?' इत्यादि तत्त्व-विचार उत्पन्न हो सकते है। तत्पश्चात् फेवल इन तत्त्वविचारोंसे ही ब्रह्म-ज्ञानद्वारा मोक्षप्रानि सम्भव है, क्योंकि यह सय प्रपञ्च केवल अज्ञानजन्य है किमी पारम्भ-परिणाम करके नही पना । 'नान्यः पन्या विमुक्तये' (श्रुति) अर्थात् मोक्षके लिये अन्य कोई मार्ग है ही नहीं। परन्तु तिलक-मतमें तो कमेका कदाचित् पर्यवसान है ही नहीं। जिस प्रकार उदरविकारके रोगीको वैद्य जुलाय दिये ही जाय और उसको कभी बन्दन करे तब उसकी क्या दशा हो सकती है ? यही अवस्था तिलकमतकी है। हाँ यदि इस मतमे धन्धरूप संसार सत्य हो तब उसकी निवृत्तिमें ज्ञानकी सार्थकता नहीं, किन्तु फर्म ही चाहिये । परन्तु रज्जु-सर्पके समान मिथ्या वस्तुको निवृत्तिमें कमेका अपेक्षा नहीं, किन्तु ज्ञानरूप दीपक ही केवल उपयोगी है। करेंद्वारा मोक्षप्राप्तिकी पुष्टिम गीताके जिन श्लोकोंको तिलक महोदयने प्रमाणमें दिया है, उन पर विचार अगले अकोंमें किया जायगा।
'ज्ञानीके लिये ज्ञानोत्तर मृत्युपर्यन्त लोकसंग्रहके निमित्त द्वितीय श्रङ्क-निराकरण निष्काम-बुद्धिसे कर्म करते रहना फर्तन्य
-- है इस तिलक-मत पर आगे चलनेसे पहले हमको 'कर्तव्य' शब्द पर विचार कर लेना चाहिये । शास अथवा राजनीतिकी किसी प्रकारकी विधिरूप अथवा निषेधरूप श्राज्ञा (यह कर्म करो और यह न फरो) फे पालनके निमित्त