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साधारण धर्म ' अर्थात् ब्रह्मचर्याश्रममें, गृहस्थाश्रममें अथवा वानप्रस्थाश्रममें जस दिन भी तीव्र वैराग्य. हो, उसी दिन, संन्यास ले लेवे । प्रध्याय १३ में धानके साधनोंका निरूपण करते हुए स्वयं गीता (कहती है:मसक्तिरनमिष्वङ्गः पुत्रदारगृहादषु। नित्यं च समचिचत्वमिष्टानिष्टोपपत्तिषु॥ मयि चानन्ययोगेन भक्तिरव्यभिचारिणी । विविक्तदेशसेवित्वमरतिर्जनसंसदि ॥ अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् । एवज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोऽन्यथा ॥ (ो से ११)
अर्थ:-पुत्र, स्त्री, घर व धनादिमें आसक्तिका अभाव और ममता न होना, प्रिय-अप्रियकी प्राप्तिमें सदा ही चित्तका सम रहना, मुझमें एकीमावसे स्थितिरूप ध्यान-योगके द्वारा, अन्यभिचारिणी भक्ति, एकान्त देशमें रहनेका स्वभाव, जनसमुदायमें अरति ( अर्थान अनासक्ति), अध्यात्म-ज्ञानमें नित्य स्थिति और तत्व-ज्ञानके अर्थरूप परमात्माको सर्वत्र देखना यह सत्र तो ज्ञान है और जो इसके विपरीत है वह अज्ञान। . . - अध्याय १८ श्लोक ५१, ५२, ५३ में फिर भी ऐसा ही कहा बुद्धया विशुद्धया युक्तो धृत्यात्मानं नियम्य च [... शब्दादीविषयांस्त्यक्त्वा, रागद्वेषौ व्युदस्य च-11... विविक्तसेवी लघ्याशी। यतवाक्कायमानसः। : 'ध्यानयोगपरों नित्यं वैराग्यं समुपाश्रितः ।' : -
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