Book Title: Atmavilas
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shraddha Sahitya Niketan

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Page 504
________________ थीं इत्यादि । यही भावरूप समाधि है जो अन्य सव समाधियोंका फल है। यही वास्तविक चित्तवृत्ति-निरोध है,यही सांसारिक रागद्वे पसे हृदयको धोकर सच्चा सुदृढ़ वैराग्य हृदयमें भरपूर कर सकता है। इसी वैराग्यके द्वारा तत्व-विचारोंका प्रवाह हृदयम उमड़ आता है और तभी 'यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः' के रूपमें सहज-समाधि प्राप्त होती है। उपर्युक्त भाव-ममाधिके बिना यह सहज-समाधि दुष्कर है। इस भावरूप समाधिमें ही यह बल है कि यह अपनेको और अपने संसर्गमे आनेवालोंको द्रवीभूत कर देती है । उद्धवजी जब गोपियोंको ज्ञानोपदेश देनेके लिये ब्रजमें गये तो वे गोपियोंके शुद्ध प्रेमा-भाक्तिके भावोद्गार में पानी-पानी हो गये और उनका सव ज्ञान-ध्यान चल बसा। प्राण-निरोधादि स्वप्नमें भी ऐसे प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकते। यही कारण है कि क्या वेद, क्या उपनिषत, क्या स्मृति, क्या पुराण सभी सच्छास्त्र इस क्रियात्मक प्राण-निरोधादिकी चचो करनेसे उदासीन हैं। यदि यह क्रियामक चेष्टा परमार्थमे सुदृढ़ माधन हो और फिर भी वे सच्छास्त्र उसकी चर्चा न करें तो यह उन शास्त्रोकी अपूर्णताको ही सिद्ध करेगा। परन्तु सच्छास्त्रोंको वर तुतःपरमार्थमें यह सुदृढ़ साधन मन्तव्य ही नहीं है। यूं तो संसारमें निष्फल कोई भी पदार्थ नहीं है, जो अत्यन्त वहिमुखी मन है मुंहजोर घोड़ेके समान उसको दमन करनेके लिये यह क्रियात्मक चेष्ठा भी सफल हो सकती है परन्तु दमन होनेके पश्चात् शुद्ध भा. चोद्गार ही उसका फल है,स्वतन्त्र दमन फलरूप नहीं हो सकता। मारांश, भावांकी शुद्धि विना मनकी शुद्धि नहीं होती और शुद्ध मावोद्गारद्वारा भावोंकी एकाग्रता विना मनकी एकाग्रता नहीं हो सकती । जिस प्रकार लोहसे ही लोहा काटा जा सकता है, इसी प्रकार उपयुक्त रीतिसे भावोंकी शुद्धि व एकाग्रताद्वारा तत्त्व निर्णायक भावोंको जाग्रत् करके ही यह भावात्मक संसार निवृत्त

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