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( ३७ ) . भाव-अभाव, अन्धकार - प्रकाशरूप सब वस्तु व ज्ञानोको प्रकाश देनेवाला है। और आप न स्थूल है न सूक्ष्म. न स्थावर न जगम, बल्कि सबसे न्याग है. सोई सवका साक्षी मैं हूँ। . नहीं देह इन्द्रिय न अन्तःकरण ।
नहीं बुद्धयहकार व प्राण मन ॥ नहीं क्षेत्र घर वार नारी न धन ।
मैं शिव हूँ, 'मैं शिव हूँ, चिदानन्द धन ।।
(३) तत्व-विचार, (१) जो वस्तु उत्पन्न होती है सो कार्य है. जैसे घट उत्पत्तिवाला,होनेसे कार्य है। इसी प्रकार पञ्चभूतात्मक सम्पूर्ण बाह्य प्रपञ्च और देह, इन्द्रिय, मन, बुद्धंगादि आन्तर प्रपन्च उत्पत्ति रूप होनेसे कार्य है। . (R) काय बिना किसी उपादान कारणके उत्पन्न नहीं हो सकता, जैसे मृत्तिका विना घटकी सिद्धि असम्भव है ! इसीप्रकार कार्यप इस आन्तर वृ वाह्य जगतका उपादान अवश्य चाहिये । और सो उपादान इस अखिल प्रपञ्चका कोइ एक ही वस्तु होना चाहिये । यदि नाना उपादान माने जाएँ तो वे नाना उपादान घट-पटादिके समान कार्य ही होंगे और फिर उन नाना उपादानोंका कोई एक ही पाटान मानना होगा।
.(३). ऐसा एक उपादान अपने कार्योंसे भिन्न होकर भी नहीं रह सकता, बल्कि अपने कार्योंके सर्व देशमैं अनुगत रहकर अभिन्नरूपसे ही उसकी स्थिति सम्भव है। जैसे मृत्तिका घट में अनुगत , होकर अभिन्नरूपसे ही स्थित रहती है। इसी प्रकार कार्यरूप उभय (आन्तर बाह्य) अपस्का उपादानं कारण सत्तासामान्य सत्-चिच श्रानन्दरूप आत्मा ही हो सकता है, जो सर्व कार्योंके अन्तर-बाहिर अनुगत होकर अभिन्नरूपसे स्थित रहताहै।
(१) अपने उपादानसे,भिन्न कार्यकी अपनी कोई सत्ता नहीं