Book Title: Atmavilas
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shraddha Sahitya Niketan

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Page 538
________________ इसी प्रकार पञ्चभूतादि सब 'विशेषरूप मामान्यतनने भिन्न कोई वस्तु नहीं हैं, मव विशेषरूपोंमें मामान्यचेनन अप ही रुपको देखता है, विशेषरूप केवल प्रतीतिमात्र व भ्रममा ही हैं। क्योंकि सामान्यचेतनको निकाल लेनेसे विशेषरूपोंकी कोई सत्ता रहती ही नहीं है, जैसे सुवर्ण निकाल लेनेपर भूपणों स्थिति नहीं रहती। (5) जिस प्रकार उत्पत्ति व नाश कटफ-कुण्डलादि विशेषरूपोंका है, सामान्यरूप सुवर्णकी न उत्पत्ति है न नोश / वह तो सब विशेपम्पोंके उत्पत्ति-नाशमें ज्यूं का-त्यू है और मब विशेषरूपोंके उत्पत्ति-नाशको अपनी सत्तामानसे प्रकाशता है। इसीप्रकार उत्पत्ति-नाशं पञ्चभूतादि व देहादि विशेषरूपा का ही होता है, सामान्यचेतनकी न उत्पत्ति है न नाश / वह तो सब विशेषरूपोंके उत्पत्ति-नाशमें ज्यू -का-त्यू है और सब विशेपरूपोंके उत्पत्ति-नाशको अपनी सत्तामात्रसे प्रकाशता है.। (6. पञ्चभूतादिमे कारणता और देहादिमें कार्यताप्रतीति भ्रमरूप है, क्योंकि पञ्चभूतादि आप उत्पत्तिवाले होनेसे कार्य है व विशेषरूप हैं। और जो कार्य है सो आप भ्रमरूप है, फिर वह किसी दूसरेका कारण कैसे हो ? जैसे कटक आप कार्य है फिर वह कुण्डलादिका कारण कैसे हो ? केवलं सामान्यचेतन ही सर्व कारण कार्योंका एकमात्र कारण है / और घर है, देह है, सुख है, दुःख है इत्यादि सब भाव अभावरूप पदार्थोंमे है, है, है, है रूपसे प्रतीत होता है। 'सो सवका सत्तारूप सामान्य चेतन मैं हूँ,' यही 'सोऽहम्' शब्दका अर्थ है। नहीं देह इन्द्रिय न अन्तःकरण / नहीं बुद्धपहकार व प्राण मन / / नहीं क्षेत्र घर वार नारी न धन। ' मैं शिव हूँ मैं शिव हूँ चिदानन्द धन

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