Book Title: Atmavilas
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shraddha Sahitya Niketan

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Page 536
________________ । ( ३८ ) हो सकती, केवल नाममात्र व प्रतीतिमात्र ही कार्य होता है। जैसे घटकी मृत्तिकासे भिन्न अपनी कोई सत्ता नहीं, मृत्तिकामे केवल नाममात्र व प्रतीतिमात्र ही घट होता है। इसी प्रकार कार्यरूप देहादि जगन्की आत्मासे भिन्न अपनी कोई सत्ता नहीं, केवल नाममात्र व प्रतीतिमात्र ही जगत है। जिस प्रकार घट मृत्तिकारूप ही है,इसीप्रकार देहादि जगत् आत्मस्वरूप ब्रह्म ही है। (५) यद दहादि जगतका कोई अन्य कारण पञ्चभूतादि माने जाएँ तो नहीं बनता, क्योंकि पञ्चभूत स्वयं कार्य हैं। और जो कार्य है वह कारण नहीं बन सकता, क्योंकि कार्य अपने उपादानमें नाममात्र ही होता है, वस्तुतः अपनी कोई सत्ता नहीं रखता । उत्पत्तिवाले होनेसे पञ्चभूत जव स्वयं कार्य हैं, अपने उपादानमे केवल नाममात्र हैं और स्वसत्ताशून्य है, तब वे देहादि जगतका उपादान कैसे हो? क्योकि मिथ्यासे मिथ्या की उत्पत्ति अथवा प्रतीति सम्भव नहीं, किन्तु सत् वस्तुके आश्रय ही मिथ्या वस्तुकी प्रतीतिका सम्भव है। । (६) इन रीतिसे सम्पूर्ण देहादि जगत्का कारण एकमात्र सत्तासामान्य, अस्ति-माति-प्रियस्वरूप आत्मा ही है और उसीमें यह मव देहादि जगत, अन्तःकरण व वृत्तियॉ अभासमात्र व प्रतीतिमात्र ही हैं । सम्पूर्ण प्रपञ्चमे अस्तिरूपसे वह सत्तासामान्य स्पष्ट प्रतीत होता है और उसीके माससे ये सब भासमान हो रहे हैं। जैसे घट है, पट है, देह है, मन है, बुद्धि है, पर्वत है, वृक्ष है इत्यादि रूपसे सब प्रपञ्च सत्तारूप स्पष्ट प्रतीत हो रहा है, 'सो सवका सत्तारूप आत्मा मैं हूँ। नहीं देह इन्द्रिय न अन्तःकरण । । नहीं बुद्धयहकार व प्राण मन || ... नहीं क्षेत्र घर वार नारी न धन । मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ, चिदानन्द घन॥ ..

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