Book Title: Atmavilas
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shraddha Sahitya Niketan

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Page 516
________________ हे प्रभो! आपकी कृपासे अब हमको यह ममम पाई है कि आपको अपने सिवाय अन्य किसी ससारी पदार्थाका ममत्व नहीं रुचता। अर्थात् आपनहीं चाहते कि आपको छोड किसी अन्य पदार्थमें मन फँसाया जाय,क्योंकि सुखस्वरूप केवल आपके चरणकमल ही हैं। परन्तु जीव अपनी भूल करके सुखस्वरूप आपके चरण-कमलोंको छोड, जब मंसारके किसी भी पदार्थको सुखबुद्धि करके ग्रहण करता है और उसमें अपना ममत्व देता है, तब तब ही उसको दुखकी प्राप्ति होती है। वास्तवमे पदार्थ यदि हमारे होते तो हमको कभी धोखा न देते परन्तु उन पढाथोंसे धोखा ही इस वातको सिद्ध कर देता है कि हमने अपनी भूल करके उनको अपना मान लिया था,इसी लिये हमको धोखा लगा। हमारे इस शरीरमे आनेसे पहले भी वे पदार्थ हमारे नहीं थे किन्तु आपके ही थे और जब हम इस शरीरमें न रहेगे तब भी वे हमारे न होंगे आपके ही होकर रहेंगे बीचमें ही उनको अपना मान बैठना, यही आपकी चोरी है और यही अमानतमें खयानत। जो चीज पहले भी हमारी न हो और पीछे भी हमारी न रहे, फिर बीचमें ही वह हमारी कैसे हो सकती है। सचमुच वे पदार्थ सदा आपके ही हैं, आपसे वे कभी कहीं विछुड़ते। यद्यपि हमसे उनका विछोह हुवा है, परन्तु आपके राज्यसे तो वे अब भी कहीं बाहर नहीं गये । इस प्रकार वास्तव में हमारी चीज तो नष्ट हो जाती है, परन्तु आपकी चीज़ कभी नष्ट नहीं होती। इस प्रकार हे भगवन् ! हम सब ओरसे निराश हो अब आपके द्वारपर आ पड़े हैं, जहाँ आपने चीरा लगाया है वहाँ कृपाकर फोहा मी रक्खो। और शान्तस्वरूप अपने चरण-कमलों की पवित्र भक्ति दो तथा वह सच्चा बल हमारे हृदयमें भर दो जिससे फिर कभी हम ऐसी भूल न करे और आपके चरण-कमलों के सिवाय और किसी पदार्थमें अपना ममत्व न दे बैठे। आपके

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