Book Title: Atmavilas
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shraddha Sahitya Niketan

View full book text
Previous | Next

Page 526
________________ ( २८ ) इष्टदेवकी प्रार्थनाके अनन्तर मनके साथ विचार अरे मन | आज ईश्वरस्वरूप अपने इष्टदेवको सातो देकर सत्य-सत्य तेरेसे तेरे इस जीवनका लेखा माँगता हूँ। निष्कपटता से मुझे आज बता कि तेरा पाना इस संसारमै और इस योनिमें किस लिये हुआ था और जिस निमित्त तू आया था उसमेसे क्या कुछ तूने किया है ? यह तो हमे तत्काल ही फनूल कर लेना पड़ेगा कि केवल सुख प्राप्त करनेके लिये और ऐसा सुख प्राप्त करने के लिये कि जिसका कमी क्षय न हो, केवल यही निमित्त तेरे संसारमें आनेका है। अच्छा! अव यह बतला कि अवतक इस लक्ष्यकी पूर्तीमें तू कहाँतक आगे पढ़ा या पीछे हटा ? मैं जो हड़काये कुत्ते के 'समान इस भोजन (परंसुख)का मूखा आया था, अबतक मेरी भूख मिटानेके लिये क्या तो तू ने: (१) भोगरूपी हड्डियाँ ही मेरे सम्मुख डाली, जिनमें तेरे करके भरमाया हुआ मैं अपना ही मसोड़ा फोड़ अपना ही खून 'पीता रहा । परन्तु मेरी भूख तो अभीतक एक मासके बरावर कुत्ते हड्डीको धवाते हैं जिससे उनका मसोढा फुटकर खून निकल आता है । अपने ही खूनका पान करके जो मिठास उनको प्रतीत होता है, वह मिठास हडोमेसे पाया जान वे बारम्बार उसको चबाते हैं। इसी प्रकार जो सुन्न विषयसम्बन्धसे जीषको प्राप्त होता है वह विषयों में नहीं, किन्तु मनुष्य के अन्तरारमाके ममासमन्य हो यह सुख होता है, 'जेसा भास्मविलास प्र.ख.पू.७७ से ८२पर स्पष्ट किया जा चुका है परन्तु मनुष्य अपने भज्ञान करके विषयोंको ही सुखस्वरूप जान बारम्बार उनका सेवन करता है और दुखी होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538