________________
[आत्मविलास वेगसे अपनी सड़कपर चले जाएँ, उनको पीछे मुडकर ज्यो देखना चाहिये ? जब वे पीछे मुडकर देखते है उसी समय उनकी चाल वेढंगी हो जाती है ।मला, आत्म-अकल्याण करते हुए देशकल्याण कैसे होगा?
सरांश, दाता व भिक्षुक दोनोंके लिये परमशान्तिका साधन जो यह भिक्षावृत्ति, उसे 'निर्लनतामूलक' कथन करनेपर तो निर्लज्जता भी लज्जित होती है। ___() अप हमें देखना है कि अनासक्त व्यवहारिक कर्म क्या है ? प्रकृतिके राज्यमें भेद है । प्रकृतिभेद, गुणभेद, वर्णभेद,
आश्रमभेद, शरीरभेद, इन्द्रियभेद और मन-बुद्धिका भेद, सारांश सर्व संसार भेदरूप ही है। जब सर्व भेदमय है तब अधिकारभेद ही क्यों न हो ? और जब अधिकारभेद सिद्ध हुआ, तब अधिकारानुसार प्रवृत्ति व निवृत्तिका भेद होना भी जरूरी है। जबकि अधिकारभेद मुख्य है तब अधिकारानुसार प्रत्येक प्रवृत्तिच प्रत्येक निवृत्ति 'व्यवहारिक कर्म के अन्तर्गत आनी चाहिये । प्रवृत्तिरूप कर्म ही 'व्यवहारिक कर्म है और निवृत्तिरूप कर्म 'व्यवहारिक कर्म नहीं, ऐसा तो कोई भी बुद्धिमान् श्राग्रह नहीं करेगा, क्योंकि प्रहण-त्यागरूप सम्पूर्ण व्यवहार व कर्म प्रकृतिके राज्यम ही है । इसलिये अधिकारानुसार प्रवृत्ति व निवृत्ति दोनों भी प्रकृतिके राज्यमें ही हैं और अधिकारभेदसे दोनो ही 'कर्म' की व्यापक व्याख्या आजाते हैं । इस प्रकार क्या प्रवृत्ति व क्या निवृत्ति जब दोनों व्यवहारिक फर्म' ही हैं, तब फलकी आसक्ति छोड़ कर होनों ही 'अनासक्त व्यवहारिक कर्म' बनाये जा सकते हैं। फलाशारहित कर्मको ही 'अनासक्त कर्म कहते हैं, इससे सिद्ध हुआ कि फलकी आशाका परित्यागकर अधिकारानुसार प्रवृत्ति व निवृत्ति दोनों ही 'अनासक्त व्यवहारिक कर्म' है।