Book Title: Atmavilas
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shraddha Sahitya Niketan

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Page 452
________________ [ १६२ आत्मविलास ] द्वि० खण्ड स्थितिका सम्भव है, स्वतन्त्र नहीं । इस प्रकार यह निश्चित हुआ कि 'काल' की स्थिति निरपक्ष नहीं, किन्तु 'देश' व 'वस्तु' की अपेक्षा करके, 'देश' व 'वस्तु' के श्राश्रय ही 'काल' की स्थिति है। (२१) यदि वस्तुका विचार करे तो वस्तुको तो देश व काल की अपेक्षा मर्व अनुभवसिद्ध है ही । वस्तु किसी देश व काल के आश्रय ही अपनी स्थिति रख सकती है। इससे सिद्ध हुआ कि 'देश' 'काल' व 'वस्तु' तीनो परस्पर वस्तु परिच्छेदवाले हैं, भिन्न-भिन्न जातिवाले है और तीनो परम्पर समदेशी व समकालीन हैं। अत तीनो विजातीय होते हुए भी प्रत्येकको अपनी स्थितिमें शेष दो की अपेक्षा रहती है। देशको काल व वस्तुकी अपेक्षा है, कालको देश व वस्तुकी अपेक्षा है और वस्तुको काल व देशकी अपेक्षा है। इस प्रकार तीनोकी परस्पर सापेक्ष व अन्योन्याश्रयरूपसे स्थिति है, निरपेक्ष व स्वतन्त्र किसीकी भी स्थिति नही है, इसलिये तीनो ही अन्योऽन्याश्रय होनेसे स्वसत्ताशून्य हैं। जो वस्तु अपनी कोई सत्ता नही रखती वह रज्जुमे सर्प समान भ्रमरूप ही हैं, इस प्रकार यह तीनों ही अन्योऽन्याश्रय होनेसे और स्वसत्ताशून्य होनेसे अधिष्ठानचेतनमे भ्रममात्र हैं। • (२२) शङ्का - तीनों परिच्छेद अन्योन्याश्रयरूपसे भले ही रहे, परन्तु यह तीनो ही अपने वृत्तिरूप ज्ञानके आश्रय रहते हैं, ऐसा क्यो न माना जाय ? क्योकि वृत्तिज्ञानद्वारा ही वस्तुका प्रकाश होता है। । ( २३ ) समाधान :- मान लो कि यह तीनो वस्तु अपने वृत्तिज्ञानके आश्रय स्थित है, परन्तु वृत्तिज्ञानका कोई अन्य आश्रय नहीं पाया जाता, ज्ञानकी स्थिति भी तो वस्तुके आश्रय हो माननी पड़ेगी । क्योंकि वस्तुसे पूर्व भी वस्तुका ज्ञान नही था और वस्तु नाश होनेपर भी वस्तु ज्ञान नहीं रहता। इसलिये

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