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आत्मविलास]
[१८ द्वि० सण्ड
इम अज्ञान करके ही जीव अपनको कर्माका कर्ता और भगवान्को फलप्रदाता मानता है । वास्तवमे तो अपने मान करके क्या प्रमाता, क्या प्रमाण, क्या प्रमा और पया देश-कालवस्तुरूप प्रमेय, सर्व प्रपञ्चको स्वप्नवत्त एक मात्र अपने भीतरसे ही निकालता है, इनमे कारण-कार्यभाव कोई नही। परन्तु इम तत्त्वको न जान अपनेसे भिन्न ईश्वारूप व्यक्ति विशेषको म मर्य प्रपञ्चका रचयिता मानता है और मैं और हूँ यह और है। इस भेदबुद्धि करके अनहुए कर्तृत्व-भोक्तृत्व-अभिमानको अपनेमें धार लेता है। प्रकृतिमें यह नियम है कि कर्तृत्व-अभिमानके माथ ही पुण्य-पापका बन्धन होता है, कर्तृत्वाभिमान पाया कि विधिनिषेध व पुण्य-पापका बन्धन उसपर लागू हुना। इस प्रकार अपनी ही रची हुई नीतिसे वधायमान हुआ यह यात्मदेव श्राप ही घटीयन्त्रके समान अध-ऊर्च भटकता फिरता है। सो मायावश भयउ गुसाईं । बध्यो कीर मरकटकी नाई ।।
अर्थात् सो जीवात्मा श्राप हो अपनी मायाके वश होकर इसी प्रकार वन्धायमान हो गया है जैसे +चन्दर और तोता अपने अज्ञान करके आप ही बंध जाते हैं।
+ अन्त करणविशिष्ट चेतनका नाम 'प्रमाता' है।
+ इन्द्रियादि ज्ञानको सामग्रीको 'प्रमाण' कहते हैं, अर्थात प्रमा-शानके साधनको 'प्रमाण' कहते हैं।
न्यवहारिक सत्ताके यथार्थ ज्ञानका नाम 'प्रमा' है। +बन्दर जिस प्रकार अपने अजानसे अन्धायमान होता है, वह प्रखं.पृ.६०, ६१ पर देखो।
- तोतेको चिड़ीमार इस युक्तिसे पकहते हैं कि एक योथे बाँसकी पोरी पारीक रस्सीमें पिरोकर रस्सी के दोनों भाग वृक्षोंसे घाँध देते हैं और पोरीके अपर पुछ रुचिकर चुग्गा रख देते हैं। तोता उसको खानेके लिए जब बाँस की पोरीके ऊपर पैठता है, तब उसके भारसे पोरी धूम जाती है और ऊपरका. भाग नीचेको पा जाता है। तोता तय भय करके पोरीके साथ नीचेको लटक