Book Title: Atmavilas
Author(s): Atmanandji Maharaj
Publisher: Shraddha Sahitya Niketan

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Page 468
________________ आत्मविलास] [१७८ द्वि० खण्ड (४५) शङ्का --जाग्रतमे स्वप्नकी स्मृति होती है, क्योंकि स्वप्नके अनुभवजन्य-सस्कार जाग्रत्मे रहते है और यह नियम है कि जिसने अनुभव किया हो उसीमे अनुभवजन्य-सस्कार रहने चाहिये और स्मृति करनेवाला भी वही होना चाहिये। अनुभव करनेवाला और हो तथा स्मृति करनेवाला कोई और, यह असम्भव है। इस प्रकार स्वप्नकी स्मृति जाग्रतमे रहने से जाग्रत् ही स्वप्नका कारण सिद्ध होता है और स्वानको जामत्के प्रति कार्यता सिद्ध होती है। अन्य शङ्का :-स्वप्नमें जाग्रत्की स्मृति होती नहीं, बल्कि जाप्रत्के संस्कारोसे स्वप्नमें कभी-कभी जाग्रत्-पदार्थोंका प्रत्यभिज्ञा-प्रत्यक्ष तो होता है, परन्तु स्मृति कभी नहीं होती। इससे भी जाप्रत्को ही स्वप्न-सृष्टिके प्रति कारणता सिद्ध होती है, क्योकि जामत्के संस्कार उन पदाथोंके कारण हैं। (४६) समाधान :-यद्यपि जाग्रत् व स्वप्न दोनो अवस्थाओ का अनुभव करनेवाला एक ही है, परन्तु वह अनुभव-कर्ता जाग्रत्-अन्तःकरण अथवा स्वप्न-अन्त'करण नहीं हो सकता, क्योकि जाग्रत् अवस्था और स्वप्न अवस्थामे अन्तःकरण एक नही है, किन्तु दोनों अवस्थाओमें अन्तःकरण भिन्न-भिन्न हैं। जाग्रत् अवस्थामें जिम पुरुषके अन्त करणने 'मैं राजा हूँ' ऐसा राज्यका अहकार धारण किया हुआ है तथा हस्ति-अश्वादि जिन पदार्थोंमें सुखबुद्धि धारी हुई है, उसी पुरुपका स्वप्न-अन्तःकरण स्वप्नमे अपने-आपको चाण्डाल देखता है, चाण्डाल-वृत्ति में ही सुखवुद्धि करता है, जाग्रत्-पुण्यको पापरूप व जाग्रत्-पाप को पुण्यरूप जानता है, कभी पक्षी के समान मनुष्य-शरीरसे ही 'अपनेको उडता हुआ देखता है, कभी अपना सिर कटा हुआ देखता है, कभी चितामें अपने आपको भस्म होता हुआ देखता

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