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जो छाग्रह हो सकता है. यह तो उसकी जूटय उसके दर्शन कठोर
श्रामविलास]
[१२२ दि खण्ड वह आप कटु कैसे हो सकता है ? तुम तो हमारे आत्मदेवका दृश्य देख ही चुके हो । सत्य कहना, ऐसा कौन कठोरहृदय होगा जो इसके दर्शनमात्रसे पिघल न गया हो । इसके समान भी कोई सत्याग्रह हो सकता है ? वर्तमानमे जो तुम्हारा अधिभौतिकसत्याग्रह चल रहा है, यह तो उसकी जूठन है। अपने ईश्वरको साक्षी देकर कहना, क्या तुम्हारा हृदय उसके दर्शनले पानीपानी नहीं हुआ' यदि सच मुच तुम्हारा हृदय उस समय कठोर ही बना रहा तो अवश्य जन्म-जन्मान्तरके पापोसे भरपूर रहा होगा। अन्यथा यह सम्भव नहीं था कि हृदयमें कुछ वण्डक न
आती और दो आँसुओकी भेट उमको न दी जाती। भला जिसके देखनेसे पत्थर भी पिघल जाते हैं, फिर उसकी अपनी शान्तिका क्या ठिकाना ? देखो, जिस वैराग्यको तुम कड़वा कहते हो, उसके समान संसारमे क्या कोई भी चीज मीठी हो सकती है?
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अब आओ | विचार करे कि 'कठोर तुम्हारा संसार, या हमारा वैराग्य ।' कठोरता क्या है ? देहम आत्म-बुद्धि-थार शरीरसम्बन्धी स्वार्थोंमें निमग्न रहना, मिथ्या भोगोंमें सत्यबुद्धि धार पापके बीज मुट्ठी भर-भर बोते रहना और उन पापोके फलस्वरूप प्रागे-पीछे, दाहिने-वाएं, ऊपर-नीचे सब ओरसे दुःखो की मार खाते रहना, क्या यह कठोरता नहीं ? यदि हृदयमे जडता और कठोरता न होती तो दुःखोका कोई एक थपेड़ा लगते ही मुंह उधरसे अवश्य फिर जाना चाहिये था। परन्तु अपने श्राधरणसे सच्छास्त्र व सन्तोंके हृदयवेधी वैचनरूप घाणोंको भी 'कुण्ठितकर वारम्बार उन्हीं दुःखप्रद चेष्टायों में प्रवृत्ति रहना, यह स्पष्ट रूपसे सिद्ध करता है कि हृदय कठोर है।