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[ धर्मसाधारण से होती है तब घटका लय भी मृत्तिकाने ही होता है। इसलिये उसकी लवरूप निवृन्ति किसी अन्य एक, परिच्छेदशन्य व भेदशून्य सत्वस्तुमे ही माननी होगी। यदि उस दूसरी वस्तुको भी भेद व परिच्छंदवाली मानें तो उस दूमीकी निवृत्ति तीसरीने
और तीसरीकी निवृत्ति चौथीमे, इस प्रकार निवृत्ति-धारा मानने में अन्ननवरथा दोषकी प्राप्ति होगी और अन्ततः किसी एक भेट व परिच्छेदशन्य तथा निवृत्तिशन्य सत्वस्तुको मानना ही होगा, जिसके आश्रय इस असतरूप प्रपञ्चकी प्रतीति होती है। ऐसी स्थितिमें वीचकी धारा निष्प्रयोजन सिद्ध होगी। इससे सिद्ध हुआ कि वह सन्वस्तु जिसके बाशय प्रपञ्चकी प्रतीति हो रही है, सर्व भेद य सर्व परिच्छेदशून्य है तथा निवृत्तिशून्य है और वही इरा अिध्यस्तरूप प्रपञ्चका अधिष्टान है और वह अधिप्टान एक, भावरूप, अचल व निर्विकार हैं। इस प्रकार संक्षेपसे अधिष्ठानका विचार किया गया, अब अयस्तरूप प्रपञ्चका विचार कर्तव्य है।
(६) सजातीय, विजातीय व स्वगत त्रिविधमेद, देश-कालत्रिविध-परिच्छेदोकी । वस्तु परिच्छेदयाले ही है। उपर्युक्त विचारो अन्योऽध्याश्रयता से त्रिविध-रिच्छेदोका उस सत्यस्वरूप
धाराका नाम 'अनवरया' है। मतप कन्मित-वस्तु 'अन्यस्त' कहाती है। जिस सन्वस्तुके आश्रय श्रमको प्रतीति होती है वह 'अधिछान' कहाती है, जैसे रज्जुमे सर्पभ्रन होता है तब सम्-रज्जु निथ्या-सर्पका
विष्ठान होती है । इसीको साक्षी भी कहते हैं। सर्व विकारोम जो निर्विकाररूपसे स्थित रहे, वह 'सानी' कहा जाता है, जैसे दो पुरुषों के झगडेमें निर्विकाररूपसे रहनेवाला तीसरा पुरुष साक्षो कहा जाता है। इसी प्रकार सर्व प्रपञ्चविकाराम निर्विकाररूपसे स्थित रहनेसे उस सन्-वस्तुको 'साक्षी' भी कहा गया है।
maramana
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