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[आत्मविलास जागता है अर्थात् उसका प्रत्यक्ष अनुभव करता है। और जिस संसारमें भूत-प्राणी जाग रहे हैं अर्थात् उसे सत्यरूपसे ग्रहण कर रहे है, वह संसार इस तत्त्वमें जागे हुए मुनिके लिये रात्रिके समान शून्य होगया है।
ज्ञानी और उसके साथ 'जगत् व जगत्का, 'ईश्वर व ईश्वर का' और 'ईश्वरने हमको जगत्के लिये उत्पन्न किया है' इत्यादि व्यवहार ! आश्चर्य । महान आश्चर्य । महोदयजी ! ज्ञानी स्वयं ईश्वर है । उसके आँखे खोलनेसे संसारकी उत्पत्ति और आँखें वन्द करनेसे संसारका लय स्वाभाविक होता है। वह कभी उत्पन्न नहीं हुआ वह तो नित्यस्वरूप है । स्वयं गीतामें ज्ञानीके अनुभव के सम्बन्ध में कहा गया है:नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्वविद । पश्यन्मृण्वन्स्पृशञ्जिघनश्ननगच्छन्स्वपन्श्वसन ।। प्रलपन्विसृजन्गृह्णन्नुन्मिपनिमिपन्नपि । इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन् ॥ (श्र.५. श्लो८.८)
अर्थःमैं साक्षीस्वरूप कुछ नहीं करता, इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयोंमें वर्त रही हैं, ऐसा तत्त्वसे जानकर ज्ञानी इन्द्रियोंके सब व्यवहार खाना-पीना, चलना-सोना, रोना-धोना इत्यादि करता हुआ भी अकता है । और अनेक श्लोक गीतामें इसी आशयको व्यक्त करनेवाले मिलते हैं यथा-अ० १८ श्लोक १७, अ०३ श्लोक २७
ज्ञानी न शरीर है न इन्द्रियाँ, न मन है और न बुद्धि । वह तो सबका साक्षी और सवका आत्मा है। जैसे इसी अध्याय ५. श्लो.७ मे कहा गया है।