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[ साधारण धर्म चाहता । परन्तु तुम तो ऐसे सुखसे सोते हो मानो कुछ करना है ही नहीं। यदि तुम्हारी उपयुक्त सब भेटें इसी जन्ममें पूरी नहीं हो सकतीं तो भी तुम्हारा पुरुषार्थ निष्फल नहीं, क्योंकि उसके मूलमें सत्यस्वरूप-साक्षी विद्यमान है। फिर वह निष्फल कैसे हो सकता है ? दूसरे, अधिकारानुसार चेष्टामें एक प्रकार से शान्ति रहती है जो हमारे कदम को आगे उठाती रहती है। स्वयं भगवानका वचन है
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः समिति स महात्मा सुदुर्लभः (गी....) अर्थः-बहुत जन्मोंके पुरुषार्थसे अन्तके जन्ममें तत्व
MAIT नानको प्राप्त हुआ ज्ञानी 'सर्व वासुदेवरूप ही है। इस प्रकार
HI मुझको प्राप्त कर जाता है, ऐसा महात्मा दुर्लभ है।
अनेक जन्मोंका रोग एक जन्ममें ही कैसे निवृत्त हो सकता है ? परन्तु हाँ, यह हम छाती ठोंककर हाथपर हाथ रखकर तुमसे वचन करते हैं कि यदि तुम उपयुक्त रीतिसे ठीक-ठीक रोगकी ओषधि करने लग पड़ो तो शनैः-शनैः तुम्हारे रोगकी निवृत्ति होनी निश्चित है। इसकी जुम्मेवारी हम अपने सिर पर लेते हैं यदि इस जन्ममें ही तुमने ठीक-ठीक पुरुपार्थ किया तो अधोगतिका मार्ग तो तुम्हारे लिये अभी बन्द हो जायगा और भावी जन्ममें तुमको वरवंश आगे ही बढ़ना होगा। दृष्टान्त 'रूपसे समझ सकते हैं कि दिल्लीसे काशी जानेवाला कोई मुसाफिर दिनभर चलकर रात्रिको यदि कानपुरमें सो रहे तो प्रभात जागकर उसको कानपुरसे ही तो चलना होगा। ऐसा तो नहीं हो सकता कि जागनेपर उसको फिर दिल्लीसे ही अपना सफर आरम्भ करना पड़े। इसी प्रकार मोक्षरूप उद्दिष्ट स्थानके लिये भी मजिलें हैं जो तुमको वतलाई गई।