________________
श्रामविलास]
[२६४ घरमे जन्म लेता है । अथवा यदि वैराग्यवान है तो) ज्ञानवान् योगियोंके कुलमे जन्म लेता है, अवश्यही संसारमे ऐसा जन्म अति दुर्लभ है। वह पुरुष इस प्रकार जन्म लेकर पूर्व जन्ममे साधन किये हुए वुद्धिसंयोगको प्राप्त करता है। जैसे कोई लिखता-लिखता सो गया तो जागकर उससे आगे लिखने लग जाता है। हे कुरुनंदन । तदनन्तर वह भगवत-प्राप्तिके लिये फिर यत्न करता है । वह उस पूर्वाभ्यासके वलसे ही बरवश भगवत्की ओर खेंचा जाता है (जैसे पक्षी पेटीसे बंधा हुश्रा खिंचता है । तथा योगका जिज्ञासु भी वेदके विधि-निषेधरूप बन्धनसे उल्लञ्चिन्त वर्तता है। इस प्रकार अनेक जन्मसे शुद्धान्तकरण योगी प्रयत्नसे अभ्यास करता हुआ सम्पूर्ण पापोंसे निर्मल होकर, परम गतिको प्राप्त हो जाता है ।
अवरही तुम्हारी यह शङ्का कि बहुत-से महापुरुष इसी जन्ममे पार जाते दीख पड़ते हैं, यह किसी प्रकार अनुभवानुमारी नहीं। इससे यह नहीं सिद्ध होता कि उनका सब कुछ कृत्य उमी जन्मका है। आम्रवृक्ष यदि इस फसलमें फल. रहा है तो यह तो नहीं कह सकते कि इसो फसलमें वह वीजसे फलको प्राप्त हो गया। नहीं, बल्कि अनेक फसलोंमें सींचा जाकर और शीतोष्ण सहकर वह इस योग्य हुआ है, ऐसा मानना पड़ेगा।
पूर्वपक्षी:-लोकमान्य भगवान् तिलक कह गये हैं कि गृहस्थ में ही रहो और कर्म करो, कमसे ही मोक्ष हो जायगा, त्याग
आवश्यक नहीं । फिर तुम्हारी इन झमटोंमें कौन फंसे ? हमको तो यही अच्छा लगता है, जिससे भोग और मोक्ष दोनों ही मिल जाग।
(नोट:- उक्त पूर्वपक्षका समाधान द्वितीय स्खण्ड में देखिये)।