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[ साधारण धर्म प्रकार जो मूढ पुरुष विषयोंके नशेमें मदमस्त हो आगा-पीछा न देखकर चल रहे हैं, उनको उम वैतालके डण्डेकी चोट सिर पर सहनी होगी, आखिर वे चोटें खा-याकर अपना नशा उतरवा लेंगे और सीधे मार्गपर चल पड़ेंगे। यह भूत किमी कच्चे-पक्केका चढ़ाया हुआ नहीं, जो यूं ही दनोंसे ही उतर जाय और वातोंसे ही पीछा छोड़ दे। इसको किसीका लिहाज नहीं है । इससे अच्छा तो यह है कि पहले ही सीधी राह चल पढ़ें, जिससे डण्डेको चोटसे तो वचं रहे । प्रकृतिके उपर्युक्त नियमको हम आगे 'वैताल' शब्दसे प्रयोग करेंगे।
यद्यपि पामर पुरुषों के सम्बन्ध विशेष चर्चा करना सभ्यता पामर पुरुद्वारा | के विरुद्ध है। प्रकृतिदेवीने स्वयं अपनी श्रॉखें किये जानेवाले | लाल-लाल करके अपने कठोर कुठारको परशुयज्ञ-दानादिका रामकी भॉति तीक्ष्ण बनाया हुआ है । हमको स्वरूप... किसी प्रकार हस्तक्षेपकी क्या जरूरत है ?
थाही कटाक्ष करके हमे अपनेको क्या कनुपित करना चाहिये ? तथापि जिज्ञासुओंको इससे निवृत्तिके अर्थ उन पुरुषोकी स्वाभाविक प्रकृतिका थोड़ा निरूपण कर देना आवश्यक है। ऐसे पुरुप केवल तमोगुणप्रधान होते है और केवल आसुरी मम्पत्तिके ही धनी होते हैं। निद्रा, श्रालस्य, क्रोध, द्वेष, काम, घमण्ड, कठोरता इत्यादि उनकी दास-दासियाँ हैं, जोकि हर ममय उनकी सेवामे हाजिर रहते हैं, योगिनीरूपसे उनके हृदयो को काट-काटकर भक्षण करते और रक्तपान करते रहते हैं । ये लोग अनन्त अपवित्र संकल्पोंके जालेमे धे रहते हैं, जिनका लक्षण गीता अध्याय १६ मे इस प्रकार किया गया है:
इदमद्य मया लब्धमिमं प्राप्स्ये मनोरथम् । • इदमस्तीदमपि मे भविष्यति पुनर्धनम् ॥
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