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आत्मविलास]
[१७२ ओर वह निकलेगा, क्योंकि यह रुका नहीं रह सकता । परन्तु यदि आप ईश्वरकी ओर इसका मार्ग खोल देते हैं तो यह ससारकी ओरसे अपने प्राप बन्द होता चला जायगा । दृष्टान्तस्थलपर समझ सकते हैं कि एक हौजमे, जिमका सम्बन्ध एक अटूट जलाशयसे है, निकासके लिये दो नालियों है, एक अपर है। एक नीचे । नोचेकी नालीको यदि हम बन्द करदे तो पानी ऊपर को नालीसे चालु हो जायगा और यदि हम नोचेकी नाली खोल दें तो चाहे ऊपरकी नालीको वन्द न करे, जलका निकास अपने
आप ऊपरकी नालीसे वन्द होता जायगा और केवल नीचेकी नालीसे इसका प्रवाह चल पड़ेगा। इसी प्रकार हृदयगत प्रेमरूपी हौजकी ईश्वरसम्बन्धी नीचेकी नालीको खोल दिया जाय तो संसारसम्बन्धी ऊपरकी नालीसे इसका प्रवाह स्वतः बन्द होता जायगा । वास्तवमें बात तो यूँ है कि इस स्रोतको जोरके साथ ईश्वरकी ओर खोलनेकी जरूरत है, संसारकी ओर चन्द करनेकी जरूरत है ही नहीं, क्योंकि सत्य सत्य ही है और झूठ भूठ ही । सत्यमे आकर्षण विद्यमान है उसके साथ थोडा सम्बन्ध जोड़नेकी जरूरत है, फिर वह अपने आप चित्तको इसी प्रकार अपनी ओर बैंचता चला जायगा जैसे चुम्बक सुई को । वास्तवमे मिथ्या नामरूप संसारमें अपना कोई आकर्षण नहीं है, बल्कि उनमें जो आकर्पण प्रतीत होता है वह सत्यके नातेसे ही है, जैसे भ्रमरूप रजतमें जो आकर्षण प्रतीत होता है वह सत्यस्वरूप शुक्तिके नातेसे हो है। दृश्यमान पदार्थों में चित्त तभी खिंचता है जबकि उनको सत्यरूपसे ग्रहण किया जाता है। अर्थात् जो सत्यता केवल परमात्मामें है वह सरसवा जब हम अपनी भूलसे इन मिथ्या नामरूपोंमें आरोपित करते हैं तभी हम ठगे जाते हैं और जब कभी उनमे सत्यताकी भ्रान्ति निवृत्त हो जाती है तव चित्तका श्राफर्पण भी अपने-आप छूट जाता है।