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आत्मविलास ]
[१९२ नाम रूप अति अकथ कहानी । समुमत सुखद न परत बखानी ॥ अगुण सगुण विच नाम सुसाखी ।
उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी ॥४॥ वस्तुतः 'नाम' व 'रूप' एक अति ही अकथ कहानी हैं, जो कहनेमें नहीं आती। जिनको समझ लेनेसे तो बड़ा सुख मिलता है, परन्तु कथन नहीं किया जा सकता । निर्गुण व सगुण भगवानके वीचमे नाम ही एक सुन्दर साक्षी है । जो आप अलग रहकर दोनोंके स्वरूपका बोध करा देता है, इसलिये नाम एक चतुर दुभापिया है अर्थात् अपनी सैनसे अपने साक्ष्योंके स्वरूपको बतला देता है ॥४॥
राम नाम मणि दीप धरु, जीह देहरी द्वार । तुलसी भीतर बाहिरै, जो चाहत उजियार ॥शा यदि तुम भीतर-वाहर उजाला चाहते हो तो राम-नामका मणिमय दीपक ( जो मणिके समान नित्य प्रकाशरूप है) अपनी जिह्वारूपी देहलीके द्वारपर रखो। देहलीपर घरा हुआ दीपक घरके भीतर व बाहर प्रकाश कर देता है, इसी प्रकार नामरूपी दीपक जिह्वारूपी देहलीपर रखनेसे शरीरके भीतर व वाहर प्रकाश ही प्रकाश कर देता है ।।५।।
१. जहाँ दो पुरुष परस्पर एक दूसरेकी भाषा न जानते हों, वहाँ तीसरा पुरुप जो टोनॉकी माण जाननेवाला हो और भापसमें उन-उनकी मापामें एक दूसरेके आशयको समझाने, 'दुभाषिया' कहलाता है।