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आत्मविलास ]
[२२८ , रजस्तमश्वामिभूय सत्वं भवति भारत (गीता १४-१०), ..अर्थात् रजोगुण व तमोगुणको दवाकर सत्वगुण वृद्धिको प्राप्त होता है।
इस गणेशके एक हस्तमें अङ्कश, एकमे मोदक, एकमे कमण्डलु और एकमें माला है। अङ्कुश विघ्ननाशक चिह्न है, अथवा अपनेसे विरोधियोंके लिये दुःखरूप शापकी सूचना देता है। मोदक अपने अनुसारियोंके लिये मगलरूप वरकी सूचना देता है । कमण्डलु और माला इसके स्वरूपप्राप्तिके लिये साधन के सूचक हैं । कमण्डलु त्यागको दर्शाता है और माला ईश्वर परायणता को। प्राशय यह है कि इस सत्त्वगणरूप गणेशकी प्राप्तिके लिये त्याग ही एकमात्र साधन है । पदार्थीको पकड़से उसकी प्राप्ति असम्भव है, बल्कि पदार्थोंकी पकड़से तो रजोगुण ही मिलता है, एकमात्र पदार्थोंकी छोड़से हो उसको पाया जा सकता है। परन्तु यदि त्याग हुआ और ईश्वरपरायणता न हुई तब भी उसकी प्राप्ति सम्भव नहीं, इस लिये त्यागके साथ-साथ ईश्वरपरायणता भी आवश्यक है। ___ इस गणेशके गएडस्थलसे शान्तिरूपो मधु सवित हो रहा है, जिसकी गंधपर शुद्धान्तःकरण भावुकरूपी मॅवरे लोभायमान होकर गुझार कर रहे हैं। 'प्रस्पन्दन् मधुगंधलुब्धमधुप व्यालोल गण्डस्थलम्'
अर्थात् सत्वगुणसे ही शान्ति उपजती है, इसलिये सत्त्वगुणी है अन्तःकरण जिन्होंका और तज्जन्य शान्ति-सुखको अनुभव किया है जिन्होंने, वे ही भंवरेके समान इस गणेशके गण्डस्थलसे संवित मधुगन्धपर लोभायमान होकर गुजार कर रहे हैं और निवारण करनेसे भी निवृत्त नहीं होते।
यही गणेशमूर्णिमें कारण-ब्रह्मरूप अध्यात्म-भाव है।