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२०७7
[साधारण धर्म गणानान्त्वा गणपति " हवामहे प्रियाणान्त्वा प्रियपति * हवामहे निधीनान्त्वा निधिपति - हवामहे वसो मम आहमजानि गर्भधमात्मजासि गर्भधम् ।।
भावार्थ:-गोंमे गणपति अर्थान् गणोंका आत्मा आप ही हैं. हम अापका आह्वान करते हैं। प्रियाओं में प्रियपति अर्थात् प्रियाओंकी जान आप ही हैं, हम आपका आह्वान करते हैं । सब निधियों में निधिपति आप ही हैं, हम आपका आह्वान करते हैं। . हे मेरे सर्वस्व गणपति ! आप सर्वाधारको हम सब ओरसे प्राप्त करें, आप सबके बीजरूपको हम सव पोरसे ग्रहण करे।
जहाँ सत्त्वगुण है वही सब मङ्गल आ विराजते हैं और जहाँ रजोगुण है वहीं सव लेश, विघ्न । इसी लिये यह सर्गविनविनाशकारी मइलदाता सब देव-मनुष्यादिद्वारा बन्दन करनेयोग्य है । गाथा है कि एक समय देवताओंने दैत्योंपर चढ़ाई की, परन्तु अपने रजोगुणी अभिमानके कारण इस गणेश की पूजा करना भूल गये,इसलिये उनको सफलता न मिली। फिर लौटकर जब उन्होंने इस मूर्तिमान् सत्त्वगुणरूप गणेशकी पूजा की, इसको अपने हृदयसिंहासनपर विराजमान किया तब उनकी जय हुई। इस मूर्तिमान् सत्त्वगुणरूप गणेशकी कृपासे ही बान, कर्म, व्यवहार तथा परमार्थकी सब सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, इसी लिये इसकी शक्तिका नाम 'सिद्धि' है, जिसको इसने अपने वामागमें विराजमान किया हुआ है।
'सत्त्वात्संजायते ज्ञान' (गीता 11-10) अर्थात् सत्वगुणमे ही सब ज्ञान उत्पन्न होते हैं । तथा रजोगुणरूप भूपकको दबाकर ये गणेश उसपर आरूढ हों रहे हैं, यथा:- .