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[ साधारण धर्म ___ राजा राम अवध रजधानी !
गावत गुण सुर मुनि वर वानी ।२०॥
रामने रावणको उसके कुलसहिन नष्ट किया और सीतासहित अपने पुरमें पधारे, राम राजा और अयोध्या उनकी राजधानी हुई, जिनके गुणोंको देव और मुनि सुन्दर वाणीसे गाते हैं, ॥२०॥
सेवक सुमिरत नाम सप्रीति । विनु श्रम प्रबल मोह दल जोति ॥ फिरत सनेह मगन सुख अपने ।
नाम प्रसाद शोच नहीं सपने ॥२१॥
परन्तु: भक्त प्रेमसहित नामस्मरण करनेसे ही विना अमके मोहरूपी चलवान् रावणकी सेना (काम, क्रोध, लोभ, मोह व अहंकार) को जीत कर, प्रेममें मग्न हुए अपने निजघर आत्मस्वरूपमै प्रवेश करते हैं और 'नाम'के प्रसादसे उनको स्वप्न में भी दुःख नहीं होता ॥२शा
ब्रह्म राम ते नाम बड़, वरदायक वरदानि । " राम चरित शत कोटिमें, लिये महेश जिय जानि ।।
इसप्रकार निगुण व सगुण दोनों रूपोंसे 'नाम' बड़ा है और बरके देनेवालोंको भी वरदायक है। इसी लिये सौ करोड़ रामायणों से शिवजीने 'रामनाम' को चुनकर निकाल लिया। जप तीन प्रकारका है:
(प्रथम) वह जो पञ्चवारणीसे किया जाय, जो दूसरे को भी सुनाई दे।