________________
आत्मविलास]
[१८ शबरी गीध सुसेवकन सुगति दीन रघुनाथ । नाम उधारे अमित खल वेद विदित गुण गाथ ।।
रघुनाथजीने शवरी व गीध नीच जातिके भक्तोंको हो सुन्दर गति दी, परन्तु 'नाम'ने तो अनन्त दुष्टोंका उद्धार कर दिया, जैसा वेदोंमे गुणगाथा प्रकट है।
राम सुकण्ठ विभीषण दोऊ । शखे शरण जान सब कोऊ ॥ नाम अनेक गरोष निवाजे । लोक वेद वर विरद विराजे ॥१८॥
रामने केवल सुग्रीव व विभीपण दोको ही शरणमें रक्खा ऐसा सब कोई जानते हैं, परन्तु 'नाम'ने तो अनेक दीनों की पालना की । 'नाम'का यह सुन्दर विरद लोकवेदमें विख्यात है ॥१८॥
राम भालु कपि कटक बटोरा । सेतु हेतु श्रम कीन न थोरा ॥ नाम लेत भव सिन्धु सुखाहीं । करहु विचार सुजन मन माहों ॥१९॥
रामने रीच व चन्दरोंकी सेना इकट्ठी की और सेतुके लिये कुछ कम परिश्रम नहीं किया । परन्तु 'नाम के लेतेही संसारसमुद्र सूख जाता है, सन्नन पुरुष मनमे इसका स्वयं विचार करें ॥१६॥
राम सक्कुल रण रावण मारा । सीय सहित निज पुर पगु धारा ।।