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[ साधारण धर्म स्वरूप हैं। परन्तु मन्दबुद्धि लोग वास्तविक रहस्यको न जान 'श्याल-सारमेय' न्यायसे परस्पर वैमनस्य उपजाकर अपने दुरुपयोगसे धर्मको अधर्ममें व अमृतको विपमें पलट लेते हैं और चन्दनसे भी अग्नि उत्पन्न कर लेते हैं।
स्त्रीके भाईको 'श्याल' कहते हैं, 'सारमेय' नाम श्या सारमेय न्याय कुत्ते का है और 'न्याय' शब्दका अर्थ
दृष्टान्त है । किसीके घरमे कुत्ते का नाम धावक था और उसके पड़ोसीके कुत्ते का नाम उत्फालक । उसी मनुष्यके श्याले (साले का नाम उत्फालक और उस स्यालेके शत्रुका नाम धावक था। जव इसके घरका कुत्ता धावक (जो कि श्यालेके शत्रुका नाम भी था) और पड़ोसीका कुत्ता उत्फालक (स्थालेका नाम भी यही था) परस्पर लड़ें, तव इसके घरवाले अपने धावककी प्रशंसा करें और पड़ोसीके उत्कालकको गालियाँ दें। इस मनुष्यको स्त्री जव विवाहकर घरमे आई तव वास्तविक रहस्यको न जान अपने भाईको निन्दा और भाईके शत्रुकी प्रशंसा सुनकर अपने पतिसे झगड़ा करे । इसीका नाम 'श्याल-सारमेय न्याय' है। । इसी प्रकार वास्तव तत्वको न जानकर मन्दबुद्धि अपनेअपने उपास्यदेवकी महिमा और अन्य देवोकी निन्दापरायण हो जाते हैं । परन्तु वास्तवमें महर्षिव्यासका तात्पर्य इन पञ्च देवोंमे किसी एकको उत्कृष्ट और दूसरोंको अपकृष्ट बनानेमें 'कदापि नहीं है, किन्तु कारणब्रह्मको ध्येय ठहरानेमे ही महर्षिका मुख्य प्रयोजन है । अर्थात् जिसकी जिस देवमे रुचि हो उसको वह कारणब्रह्म (सृष्टि-उत्पादक, जगन्नियन्ता तथा संहारकर्ता) रूपसे ध्यान करे और दूसरे देवोंको उसकी विभूति रूपसे चिन्तन करे। विचारसागरके सप्तम वरनमें इसी विषयको विस्तारसे स्पष्ट किया गया है।