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[ साधारण धर्म शीतल हो जाता है जैसे सोया हुआ स्वप्नसे जागकर और स्वप्न की व्यथाओंसे छटकर शान्तिको प्राप्त हो जाता है। मज्जन फल देखिये तत्काला । काक होहिं पिक बकहु मराला ॥ यही शिव-मूर्तिमें कारण-ब्रह्मरूप अध्यात्मभाव निहित है ।
सूर्य प्रत्यक्ष प्रकाशमान तेजस्वरूप देव है और संसारके सूर्य-मूर्तिमें कारण- यावत् अधिभौतिक तेजोंका उद्गमप्रारूप निगुणमाव । स्थान है । स्थूल दृष्टि से यह सम्पूर्ण स्थूल पदार्थोका कारण है । दिन-रात और घड़ी-प्रहरादि कालकी सम्पूर्ण व्यवस्था सूर्यद्वारा ही सिद्ध होती है तथा ग्रीष्म, वर्षा, शरंद, शिशिर, हेमन्त और बसन्त इन पट ऋतुओंका परिवर्तन भी सूर्य के अधीन ही सिद्ध होता है। सारांश जायते, 'अस्ति, पद्धते, विपरिणमते, अपक्षीयते, विनश्यति इन छ: विकारोंवाला ही सम्पूर्ण प्रपञ्च है और यह सब उत्पत्ति स्थिति व लय कालके अधीन है, जिसका कारण सूर्य ही है। गमन-आगमन, आकुञ्चन-प्रसारण, उत्क्षेपण-अपक्षेपण आदि ब्रह्माण्डवर्ती सम्पूर्ण क्रिया व चेष्टाएँ भी सूर्यद्वारा ही सिद्ध होती हैं। यदि सूर्य न रहे तो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ठिठुरकर जड़ होजाय
और सम्पूर्ण क्रियाओंका सङ्कोच हो जाय। इतना ही नहीं, बल्कि यह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शब्द, स्पर्श, रूप, रस व गन्ध इन पाँच विपयों और गुणोंवाला ही है और इन पाँचोंकी सिद्धि में सूर्य
१. कोयल २. बगुला ३. गजहंस । • ४. उत्पन्न होता है । ५. विद्यमान, है । ६. बढ़ता है । ७ विकारी होता है। 6. क्षय होता है। ९. नाश होता है।